रचनाकार: त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
पंचैत चुनाव और घनदाक भाग्य।
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आज तो घनदाल लै करि है !
बल ! खूब पिवै खवै बै औरी !
पुर गौं चौबाटुँ में बात चलि रै बल !
कि कोर्ट ने भी कहा घनदा को सौरी !
गर ! आज बात नि बननी तो !
घनदा सुप्रीम कोर्ट तक जाते !
बल ! घनदा ज्ञानी आदिम ठैरे !
उनसे भी अपनी बात मनवाते !
अब घन दा को हल्के में लेना !
बल ! पड़ेगा विरोधियों को भारी !
आज निवाई फूँक दी है घनदा ने !
करंगे जिला पंचैत की उम्मीदवारी !
[ "त्रिचम" ]
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