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शकुनाखर-कुमाऊँनी मंगलगीत

शकुनाखर-कुमाऊँनी मंगलगीत


(कुमाऊँ अंचल में धार्मिक संस्कारों के शुभ अवसर पर गाये जाने वाले पारम्परिक शुभकामना गीतों या मंगलगीतों को कुमाऊँनी भाषा में "शकुनाखर" या शगुनाखर के नाम से जाना जाता है

शकुनाखर कुमाऊँ मंडल में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के समय गाये जाने वाले गीत हैं।  अगर इसके शाब्दिक अर्थ पर जायें तो इसका अर्थ है शगुन और आखर मतलब कि शुभ अक्षर, वचन, बोल आदि।  इस तरह यह नाम शुभ अवसर पर गाए जाने वाले अक्षरों या वचनों का बोध कराता है।  अगर सरल शब्दों में कहें तो धार्मिक संस्कारों एवं अन्य मांगलिक अवसरों को शुरू करने के लिए गाये जाने वाले मंगलगीत, कुमाऊँ में "शकुनाखर" कहे जाते हैं।  नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह सहित सभी मांगलिक अवसरों पर यह गीत गाये जाते हैं।  यह एक तरह से गढ़वाल के मांगल गीत का ही कुमाऊँनी रूप कहा जा सकता है।

शकुनाखर कुमाऊँ में विभिन्न पारिवारिक संस्कारों के अवसर पर गाये जाने वाले  मंगल गीत होते हैं।  Shakunakhar are the goodwill songs in Kumaun region, sung on different family celebrations, कुमाऊँनी मंगल गीत

कुमाऊँ में गाये जाने वाले "शकुनाखर" की विशेषता यह है कि यह पारंपरिक रूप से क्षेत्र की वरिष्ठ महिलाओं द्वारा एक विशेष तर्ज पर बिना किसी संगीत वाद्यों की संगति के गाये जाते हैं।  "शकुनाखर" गाने वाली महिला/महिलाओं को "गीदार" या "गीतेर" के द्वारा सम्बोधित किया जाता है।   शकुनाखर गाने वाली गीदार ज्यादातर जोड़ी में होती हैं, सुविधानुसार कई बार एक गीदार के साथ कई महिलाऎं साथ में संगत कर भी शकुनाखर प्रस्तुत करती हैं।  कुमाऊँनी समाज में गांवों में किसी कुल पुरोहित की तरह ही "गीदार" या "गीतेर" तथा प्रसव करने वाली दाई महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है। 

कुमाऊँनी भाषा की तरह ही शकुनाखर की परंपरा भी अब हमारे समाज से धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है।  इसका मुख्य कारण है कि युवा पीढ़ी का इसकी तरफ़ रुझान ना होना है।  हमारे पहाड़ की युवा पीढ़ी का रुझान अपनी परंपराओं व संस्कृति से छूटता जा रहा है।  इसका मुख्य कारण पलायन तथा मिडिया के द्वारा बोलीवुड संस्कृति का अत्यधिक प्रचार किया जाना है।

आजकल मांगलिक कार्यों में या तो लोग इस फ़ास्ट-लाईफ़ में ऎसे आयोजन को शामिल ही नही करते हैं।  क्योंकि मांगलिक कार्यों पर ज्यादा जोर मनोरंजन के लिए फ़ास्ट म्युजिक, डी.जे., ड्रिंक एण्ड डांस, स्टार परफ़ौर्मेंस आदि पर रह्ता है।  अगर कोई पारंपरिक रूप से शकुनाखर को शामिल करता भी चाहता है तो गाने वाले पारंपरिक "गीदार" मिलना मुश्किल हो जाता है।  क्योंकि इस परंपरा के "गीदारों" की पुरानी पीढ़ी लगभग समाप्त होती जा रही है।

इन्टर्नेट के इस युग में अब कुछ लोगों ने इसे संजोने की कोशिष की है।  यु-ट्युब पर कुछ चैनल्स ने शकुनाखर को विडियोज के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।  आप इसके लिए यु-ट्युब पर जाकर "शकुनाखर" की-वर्ड्स से सर्च कर सकते हैं।  आपको बहुत से चैनल्स पर "शकुनाखर" की विडियोज मिल जायेंगी।  पर पारंपरिक रूप से इसे बचाने के लिए नयी पीढ़ी में इसे सीखने की सोच भी पैदा करनी होगी।

फोटो सोर्स: गूगल
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[[सुनिए सरोज उपाध्याय जी के स्वर में प्रस्तुत शकुनाखर]]
[[पढ़िए तारा पाठक जी द्वारा प्रस्तुत शकुनाखर (लिखित रूप में)]]

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