
शेरदा की कविता - "बखत बखतै कि बात"
शेरदा की एक बहुत ही लोकप्रिय कुमाउँनी रचना है, "बखत बखतै कि बात"। यह रचना मुख्यत: महंगाई पर केंद्रित है पर इसमें समय के साथ आये सामाजिक बदलावों को भी दर्शाया गया है। कुमाउँनी भाषा की यह बहुत ही उत्तम रचना है जिसमें हास्य रास स्वभाविक रूप से विद्यमान है, जो शेरदा की कविताओं की अपनी एक विशेषता है:-
बखत बखतै कि बात
नामक हम जिमदार भै, ग्युं रवोट ख़ांण नि भै
नामक हम जिमदार भै, ग्युं रवोट ख़ांण नि भै
नामक हम दुदि भै, दूद जांणि चांण नि भै
धिनाई लै भरि रौं छि, पैलि बै चुल्याण
गाई घ्यू हड़पि रूछि, बुढ़ बाढ़ीक सिराण
दूदाक कस्यार रौं छि, दैक रौं छि ठयाक
नौनि छां पराई कैं, को लगूं छि ल्याख
अब स्यूणा ना देखण हैगो, ठेकि में क दई
मादिर जौ खानै, ओ ईजा खरोड़ि ग्ये गई
द्वि पैंसाक दई ल पैलि, दैल फैल है जान्छि
मणि ठेकि में हाल दिंछि, मणि ततै खान्छि
त्यार म्यार देखने शेरदा, अण कसि है ग्ये
पांच सेर घ्यूँ म्यर, बूड़ि आम खै ग्ये
अब दै कि तू बात नि कौ चाह कणि चूस
ठेकिन बिराऊ ब्ये रौ, हड़प्यानि मूस
सौ रुपैंक हरकानैल, पैलि ढकिनी बचुली
कानाक मुनड़ हैई, नाखै कि नथूलि
दस बीस खितो कौंछि चनरु सुनार
छै पल्लि जंजीर, सूत धागुल न्यार
अब कम जै हाथ-कानाक कुनि दुगुण जै गड़ाई
नौ रुपैं झगुलिक, सौ रुपैं सिलाई
दस रुपैंक पिसियैल पैलि, बिवे दिछी चेलि
अब दस रुपैं में औ नै एक गुड़ैकि भेलि
सौ रुपैंक भैंस मैंसुंल, बेई तलक बांधो
आज मूसक प्वौथ लै कुनई सौ रुपैं में छांटो
फिकर फरोशि यौ है ग्ये, बावैकि ठौर बूढ न्है गो
झर फर कि रै ग्ये, साबौव ठौर स्यूड़ न्है गो
घड़ि-घड़ि याद ऊना, बढबाज्यूक कूँण
कनबोजि कै ल्यूछि पोथा द्वि ढेपुवौक लूण
नौ आना क लुकूड़ दिं छि पतरु दुरयाव
ठूलि ईजैकि घागैरि हूँ छि, ठूल बाज्यूक सुरयाव
तामौक डबल में जै, मिलै दि एक पाई
रवाट जे जलेबी दिं छि, केशि हलवाई
कचिक मटर लूंछि, कचिक गुटुक
तिमूलाक पातम मारछि, मेरि आम घुटुक
सुणि-सुणि काथ तेरि, च्यूँनि फै ग्ये राव
स्यूं गाँठै खोजण फै ग्ये, शेरदा सुरयाव
आज सुनु कै जै भौ बेचानि, लाकड़ पाताड़
चोख्यूंण तेल जै ल्यूं, ढकिण हूँ खातड़
ख्वार में हथौड़ मारना, पिसि तेलौक ज्वड़
रुपैं में लगड़ पड़ना, सौ रुपैं में बड़
जतूकै पिसि बेचाना अकर कै,
उतु कै भूख लाग नै साकार कै
महंगाई लात मारनै, पूछड़ि खैंचण में
घुणि-च्यूनि एक लाग ग्ये हो,
उप्रेती ज्यूँ द्वि जांण सैंतण में
बुबुल आठ आन में मखमल ले, मील नौ रुपैं गज गाड़
बुबुल एक रुपैं में सुरयाव ले, मील नौ रुपैं में नाड़
सुनिये शेरदा की कविता "बखत बखतैकि बात" शेरदा के स्वर में
(पिछला भाग-६) ............................................................................................................(कृमश: भाग-८)
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