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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 08

शेरदा की कविता,कुमाऊँनी गीत-पार्भति को मैतुड़ा देश, Kumaoni poem about beauty of Uttarakhand, Sherda ki kavita

शेरदा का कुमाऊँनी गीत- पार्भति को मैतुड़ा देश


शेरदा की एक बहुत ही लोकप्रिय कुमाउँनी रचना है, "पार्भति को मैतुडा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा"।  यह गीत मुख्यत: पहाड़ के सौन्दर्य पर केंद्रित है जिसमें हिमालय और पहाड़ के सौन्दर्य के बारे में वर्णन किया गया है।  कुमाउँनी भाषा की यह बहुत ही उत्तम रचना है जिसमें पहाड़ की विशेषताओं और सुन्दरता को शेरदा ने अपनी काव्यात्मक शैली के माध्यम से इस गीत में प्रस्तुत किया है:-

पार्भति को मैतुड़ा देश

पार्भति को मैतुड़ा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा,
डान काना में जुन हंसें छ, पर्भतों बै तैरनि तारा।
               
हौसिया छ्न डान पर्भता, हौसिया छ्न भ्योव कभाड़ा,
मन में बसौ म्यर मुलुक, आंख में रिटौ म्यर पहाड़ा।
ख्वार मुकुट ह्यूंक चमकौ, खुट चमकिं गंग धारा,
पार्भति को मैतुड़ा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।
               
धुर जंगला, बांज पतेलि, फ़ल कांफ़ला क्ये झूलि रूनि,
धन हिसालू, धन किल्मोड़ि, फ़ूल बुरूंषि क्ये फ़ूलि रूनि।
हरिया सारि मन खै जैंछ, हौंसि लगूनि स्यार सिमारा,
पार्भति को मैतुडा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।

भिड़ कनावा मौसि फ़ुलें छ, स्यारि खेतों में पाणि तैरं छ,
भ्येव कभाड़ा पाणि कि नौई, डान-काना बै क्षिर फ़ुटें छ।
बाज बजूंनि पाणि छिणूंका, गीत लगूंनि गाड़ गध्यारा,
पार्भति को मैतुड़ा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।

शंस कांकड़ा धुर जंगला, मोर मुन्याला भल छाजनि,
ह्यून हिंगावा रूड़ि चौमासा, न्योलि कफ़ुवा सुवा बासनि।
हाव बयाव नौणि जौ मिठौ, पाणि छू जाणि दूद कि धारा,
पार्भति को मैतुड़ा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।

म्यर मुलूक सुनौ कौ ढिन, चम चमकूं सूरजै चारा,
म्यर मुलूक मणि मोतियोंक, म्यर मुलूक हिर ज्वहारा।
म्यर मुलूक स्वर्ग जसौ, मैंकेणि लागूं दूणि है न्यारा,
पार्भति को मैतुडा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।
पार्भति को मैतुड़ा देश, मेरो मुलुक कतुक प्यारा।

सुनिये शेरदा का यह प्रसिद्ध कुमाऊँनी गीत "पार्भति को मैतुड़ा देश" शेरदा के स्वर में:-


(पिछला भाग-७) .................................................................................................................(कृमश: भाग-९)


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