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कुमाऊँनी भजन - भँक्त वत्सँल हे कृष्ण मुरारी


भँक्त वत्सँल हे कृष्ण मुरारी
कुमाऊँनी भजन
(रचनाकार - सुन्दर कबडोला)


भँक्त वत्सँल हे कृष्ण मुरारी
त्यँर मुरलि धुन सुनने कू व्याकुल
व्याकुलता छलकै हे राधै श्याम
मन मा म्याँर सुनने कू त्याँर
कबतै ढुँढू ग्वाँलण मा त्वैके
कबतै धाँर नौलोँ कू काँख
अब ता दिदियौ चक्रधारी दर्शन
आँखा सुखि दर्शन कू प्याँसा

भँक्त वत्सल हे कृष्ण मुरारी
बस त्याँर बस त्यँरो नौ
और ना जाणु अगिल पछिल
गोपियो सँग राँस रँचै
भँक्तो मा ना आँच उँचै
त्वै गीतसार…
शेषनाँग मा नाँचत राँग
दर्शन दिदियौ हे यशोदा नँन्द
कष्ट दुखो तै करदु पार
मैगणि आज…
त्वै लीला धर जग धाँरी
त्वै कँन्या नरसिँग देव
पित्रर भँक्त हे बनँवाशी
दुख कष्टो तै पार लगुछै
गोकुल कै छै राँस रँचया
मथुरा मा त्वै श्याम
त्वै सारथि छै
त्वै गीतासार
जै पँथ पे तूँ कूँच करे
धर्म रँथ कू छै तूँ वैग
पैल प्रँभात कू बेला त्वैमा
श्याम वर्ण कू शाँष भी त्वैमा

भँक्त वत्सँल हे कृष्ण मुरारी
अब ता दिदियौ चक्रधारी दर्शन


लेख   - सुन्दर कबडोला ©copy right, All Rights Reserved

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