रचनाकार - सुन्दर कबडोला
माया बोटि तै लाग फुँलारु।
जूँ जड़ जाड़ि तै लाग मुँलारु॥
पैद हुण ता नौ महैण।
मरँण दिशा कौ जाणु॥
बाँलपन शिक्षा कू खेति।
जवान लता कू प्रीत ऐल॥
नव अकुँर माँटि उँपजै त्वै।
पित्रर दान कू रितै क्वै॥
हैसि खेलि चार दिना।
चार दिना मिठो बोल॥
खालि ऐरो खालि जेरो।
चार दिना माँटि खेरो॥
बात विचार भल बोली।
समाज निगाँ उठँणि मोल॥
बोट कटै ता मुँन हँवै।
मैस मरै ता बोल रँवै॥
पुर जीवन सिखलाई सिखै।
हैसि खेलि अन्तिम यात्र॥
माय मँमता जर जोरु।
यै रेजाँल त्वैगे छोड॥
दर्प दहा ज्यूँ दिल मा तैरु।
छाँव मिलै ना ठँण्डो पैरु॥
लेख - सुन्दर कबडोला ©copy right, All Rights Reserved
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