
घी त्यार (घी संक्रांति)
वैसे तो हमारे पहाड़ो में हर मौसम में कोई न कोई त्यौहार होता है, यह त्यौहार हर साल के भाद्रो मास १ गते को मनाया जाता है।
यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है, हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार अंकुरित हो चुकी फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
इस दिन बेडू की रोटि और पिनालु के पत्ते (गाबा) और पहाड़ी तोरि की सब्जी खाते है, और घर में घी से विभिन्न पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं। किसी न किसी रुप में घी खाना अनिवार्य माना जाता है, ऐसी भी मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में गनेल की जनमण जाता है।
और इस दिन जितनी प्रकार की हरी सब्जी जैसे कि तोरि, मक्का (घोघ) इस तरह की सब्जी मन्दिर में ओग (ओल्गी) के तोर पर भेट की जाती है।
उत्तराखण्ड एक कृषि प्रधान राज्य है, कई पुस्तो से यह प्रथा चली आ रही है, यहां की सभ्यता जल और जमीन से प्राप्त संसाधनों पर आधारित रही है, जिसकी पुष्टि यहां के लोक त्यौहार करते हैं, प्रकृति और कृषि का यहां के लोक जीवन में बहुत महत्व है, जिसे यहां की सभ्यता अपने लोक त्यौहारों के माध्यम से प्रदर्शित करती है।

आप सभी को इस लोक पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
वैसे तो हमारे पहाड़ो में हर मौसम में कोई न कोई त्यौहार होता है, यह त्यौहार हर साल के भाद्रो मास १ गते को मनाया जाता है।
यह त्यौहार भी हरेले की ही तरह ऋतु आधारित त्यौहार है, हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घी-त्यार अंकुरित हो चुकी फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
इस दिन बेडू की रोटि और पिनालु के पत्ते (गाबा) और पहाड़ी तोरि की सब्जी खाते है, और घर में घी से विभिन्न पारम्परिक पकवान बनाये जाते हैं। किसी न किसी रुप में घी खाना अनिवार्य माना जाता है, ऐसी भी मान्यता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में गनेल की जनमण जाता है।
और इस दिन जितनी प्रकार की हरी सब्जी जैसे कि तोरि, मक्का (घोघ) इस तरह की सब्जी मन्दिर में ओग (ओल्गी) के तोर पर भेट की जाती है।
उत्तराखण्ड एक कृषि प्रधान राज्य है, कई पुस्तो से यह प्रथा चली आ रही है, यहां की सभ्यता जल और जमीन से प्राप्त संसाधनों पर आधारित रही है, जिसकी पुष्टि यहां के लोक त्यौहार करते हैं, प्रकृति और कृषि का यहां के लोक जीवन में बहुत महत्व है, जिसे यहां की सभ्यता अपने लोक त्यौहारों के माध्यम से प्रदर्शित करती है।
श्याम जोशी, अल्मोड़ा (चंडीगढ़)
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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फोटो: हरीश रावत जी के ट्वीट से
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