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रड़ि जाण कैं कूनी उतरैणीं...

रड़ि जाण कैं कूनी उतरैणीं...
(लेखिका: प्रेमा पांडे)

एक पहाड़ी बच्चे की बाबूजी से पूछी बात..........?

ओ बाबू बाबू, ये उत्तरायणीं हैं का इतना हल्ला क्यो हो रहा है..?

बाबू कूणों च्याला तस तो मकै लै पता नहा, 
पर तू सुण, 
ऊं पाकिस्तानौ च्योल छी एक, 
एक दिन हमर देश में लड़़न हूं पुँज गो, 
हमर याँक पहाड़ी शेर दा हवलदारो च्योल अकेलै पड़गो, 
ऊ पाकिस्तानी मारण लिजी पार डाँण बटी उतरण लागो, 
तभै मली बटी रड़ी पड़ो, 
एक कौ चा रैछी ऊनन कै, 
तभै कौ ( कव्वै ) लै उँके नोचि काटि बेर खतम कर दि, 
शायद तबै बटी यो दिन हम याद करणुँ
मतलब नीचे उतरना उतरणीं भै, 
और फिसल जाना रड़ी जाना, 
है गो उतरैणीं, 
तली उतरणीं बखत रणीं जाण कैं कूनी उतरैणीं... 
और उदिनै बटी हम कौ के याद करणुँ तभै घुघती माल बणें बेर उनन कैं खिलुनू....

(ये एक व्यँग है , जो बच्चों को बहलाने के लिये है , वास्तविक्ता से कोई सम्बन्ध नहीं है). 
प्रेमा पाण्डे

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