'

पहाड़ों तुमा जी रया हो।

रचनाकार:  रेणुका जोशी

पहाड़ों तुमा जी रया हो।


पहाड़ छोडि़ बे न्है गोछा त
के बात ना , जां चांछा वै रौओ
जां लै रौला आपुणै समझिया
भलिक रया भल कर्या हो।

हमार पहाड़ हरी भरी रूंण चैनी
सब्बै चाड़ , बाग , बानर,
स्याप, स्याव, चुथरौव, साम्भर
जी रया यस कया हो

हमूंल त आपुण मनल घर छोडि़
हमार बण गाड़ गध्यार हमार बाट देखाल
आपुण बोटन कं अंगाउ लगुहूं
घर उनै रया हो।

यौ पहाड़नैकि उज हमैरि आंग बसी भै
इनैरि असीस ल्ही बे हमार घर उज्याउ भै
यां कभै अन्यार नि हौ इष्टो
पहाड़ों तुम बची रया हो।

खन्यार कुड़न में बोट जामि गेईं या
बाड़ पन भूड़ और दुब छोपी गेईं
यौ लै त जीवनै भै, द्यो घाम ऊनै रौ
पहाड़ों तुमा जी रया हो।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ