पहाड़ से पलायन
पारा भिड़ देखो धैं
कस हरि घा हैरौ।
वैं जानू हिटौ
यां के धरी रौ।
पार पार उनै हम
लफाउ मारि यां ऐ ग्याइ।
आब लागि नरै जब
हात खुट पटै ग्याइ।
जां रुंछा वै रौऔ
द्वि नावन में खुट नि धरौ।
मातृभूमि गर्व करैलि
कर्मभूमिक सेवा करौ।
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