पहाडा़ पन जो रूं।
फरफरान हौ चल रै
गोरु बाछन कं गोठ बांधू
ह्यूना दिन छन घाम हरै गो
भोल पडौ़ल ह्यूं।
गिणीं चुंणी मैस गौं पन
खेति पाति लै बजी रै
बानरांंक उज्याड़ छू
कसी बोऊं ग्यूं।
गाड़न में पाणि न्हा
कसिक चलनी घराट
भट भुटै खानू पै
कसिक पिसूं ग्यूं?
गौं वाल भाजि देस त
सड़क ऐगे गौं जालै
को बैठल मोटर में
कैकं चहा द्यूं?
बाखैइ त खन्यार हैगे
पटांगण पन बकौल
बुजां पन बागा पोथील
आब इनार दगै रूं?
पुरखौं की थाति छू यौ
जाओ रे जो जांछा
लुवौ खुट काठा कपाव चैं
पहाडा़ पन जो रूं।
0 टिप्पणियाँ