
द्वि आंखर
कुछ दिन पैंलि कुमाउनी कविता पर एक कार्यक्रम क वीडियो यू ट्यूब में डालि थ्यो।
कुमाउनी कि अच्यालों लेखि,पढ़ि जानें कविता की समीक्षा, समालोचना करनेर वक्ता कूंन लागिर्योथ कि कुमाउनी कविता में नांस्टेल्जिया यानि अतीत मोह कि अधिकता छ और ये में हिंदी या मराठी कविता कि जस्यै स्त्री और दलित विमर्श न्हाति।
पछिल बीस तीस साल में कुमाउनीमें भौत काम होई छ।
अच्यालों और जोरदार काम हुनमरि।
मथुरा दत्त मठपाल ज्यू,गोपाल दत्त भट्ट ज्यू,बालम सिंह जनौटी, महेंद्र मटियानी,जगदीश जोशी, बहादुर बोरा श्रीबंधु, महेंद्र माहरा, त्रिभुवन गिरी ज्यू,मोहन जोशी तमाम लोगों ले भौत भल लेकिन राखौ और अपन डबलोंल छपै बेर कुमाउनी साहित्य सेवा करी।
हिंदी मौत ठुला आवादी कि, बजार ओर विज्ञापन कि भाषा छ।
सौ है ज्यादा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जांछि, रोजगार कि भाषा छ।
कुमाउनी बिना सरकारि सहयोग, बिना क्वे धनपति कुबेर क सहयोग ल, जनसहयोग ल बढनेर जनभाषा छ।
हिंदी के खुल साहित्यकारों कि वे सब्बै रचना श्रेष्ठ और अंतर्राष्ट्रीय मानकों वाले न्हातिन,नैन है सकन।
गिरीश तिवारी गिर्दा क कुमाऊनी जनगीत अपन में कुमाउनी कविता कि श्रेष्ठता साबित करछि।
कैसै ले भाषा में जै रचनाकार क ठोस काम न्हाति तो छ मूल्यांकन, समीक्षा ले कसिकै हकदार हैं सकूं।
दिनेश भट्ट, सोर पिथौरागढ़
0 टिप्पणियाँ