
अरे मनख त्वे कब अकल आलि
रचनाकार: सत्यम जोशी
कुड़ी बाखलिक छाज द्वार सड़ि गईं
विकासक नाम पर पलायन हवाई रो
कलयुग यस घनघोर ऐ रो
बूड़ि आमा अब कै बाट चालि
अरे मनख त्वे कब अकल आलि
बण जंगल सब साफ़ करि हालि
गाड़-गध्येराक रोड़ि-बजरि बेचि हालि
धुरी बैंसीक बदल लू-सरिया पईनैई
तभै त्यर घर अब बज्र पड़नैई
इसीकै त हर साल आपदा आलि
अरे मनख त्वे कब अकल आलि
पैलि लेक सतझड़ पदछयां
भट्ट भूटी खाज लै खाछया
अब बरख मूसलाधार हुँछि
मन पराण सब झुरि रूँछि
बोट-बाट सब त्वील ऊजाड़ हालि
अरे मनख त्वे कब अकल आलि
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