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मीठी मीठी-77: गोपालबाबू गोस्वामी की मधुर स्मृति










Gopalbaboo goswami : गोपाल बाबू गोस्वामी
मीठी मीठी - 77 : गोपालबाबू गोस्वामी की मधुर स्मृति 


कल 02 फरवरी को कालजयी लोकगायक गोपालबाबू गोस्वामी की जयंती थी।  उनका जन्म 02 फरवरी 1941 को उत्तराखंड के मल्ला गेवाड़, चाँदीखेत, चौखुटिया में हुआ।  माता चनुली देवी और पिता मोहन गिरी के पुत्र गोपालबाबू संस्थागत तौर से 8वीं की परीक्षा नहीं दे सके।  बचपन में ही पिता का देहांत हो गया।  उन्हें बचपन से गीत गाने का शौक था । 1970 में उत्तरप्रदेश सरकार के गीत - नाटक विभाग ने उस क्षेत्र में इस प्रतिभा को देखा और 1971 में अपने विभाग में नौकरी दे दी। वे गीत गायन के अलावा हारमोनियम और बांसुरी वाद्य में पारंगत थे।

 वर्ष 1976 से मृत्यु 26 नवम्बर 1996 तक वे इस कार्य में अविरल जुटे रहे । उन्होंने HMV और पोलिडोर के लिए कई गीत गाये।  उनके गीत आकाशवाणी नजीबाबाद और अल्मोड़ा से निरन्तर प्रसारित होते रहे । उनके प्रमुख गीतों में हैं - 'छोड़ि दे म्यरो हात, भुर भुरू उज्याव, जा च्येलि सौरास, कैले बजै मुरली, जय मैया, हाय त्येरी रुमाला और घुघुती ना बासा..आदि हैं । उन्होंने चंद्रा बिष्ट के साथ कुछ युगल गीत भी गाये । उन्होंने 'गीत माला, दर्पण, राष्ट्रज्योति और उत्तराखंड आदि कुछ पुस्तकें भी लिखी । मात्र 55 वर्ष की उम्र में ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त होने पर सुर, स्वर, शब्द और आंखरों का धनी यह अप्रतीम व्यक्तित्त्व दुनिया में अपना नाम अमर करके हमसे अलविदा कह गया।  गोस्वामी जी का परिवार सम्बंधी विवरण नहीं जुटा सका जिसकी चर्चा उपलब्धता पर फिर कभी।

मैंने उन्हें कई मंचों पर अपनी प्रस्तुति देते देखा।  आज उन्हें गए हुए 22 वर्ष हो गए। उनके गीत जिन्दे हैं। उन्होंने विशेषतः उत्तराखंड की नारी के विरह को अपने गीतों से उकेरा।  वर्तमान में कुछ लोग मंचों पर उनके गीत गाते हैं परन्तु उनका नाम नहीं लेते।  बहुत दुख होता है इन स्वनामधन्य गायकों को देख कर।  उनका नाम लोगे तो आदर आप ही पाओगे।  मैं भी कई बार समाज के हित में  गुमानी पंत, गिरदा, गौरदा, शेरदा, हिरदा आदि की रचनाओं का संदर्भ देता हूं परन्तु इससे पहले उनका नाम लेता हूं।  मुझे सुकून मिलता है।  इस लेख को लिखते समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं उस अमर व्यक्तित्व के दर्शन कर रहा हूं।  इसलिए सभी मित्रों से निवेदन है कि हम जिसकी भी रचना गायें या कविता पढ़ें या लेख का संदर्भ दें, उनका नाम जरूर लैं।  यह उन सभी के प्रति कृतज्ञता और शिष्टता प्रकट करने का सुंदर और सरल तरीका तो होगा ही आपके सम्मान की सीढ़ी का पहला पायदान भी होगा।

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 03.02.2018

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