
"छोड़ मधनियाँ बल्दक पुच्छड़" भाग (२)
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
भाग (1) है अघिल
आघिल दिन फिर बामण ज्यू रात्ति ब्याणकैं नै ध्वे संद्या पुज करि बेर आपुण झ्वल कानिम टाँकि बेर लम्ब खुटाँल पधानुकि बाखइ हैं हिट दी ! पधानुकि बाखइ पूजते ही बामण खूब आदर सत्कार हौय ! उवीक बाद बामण ज्यूल टिक पिठ्याकि थाई, आठ दसेक तिमिलाक पतेल, जँण चारेक फूल पात और मुणि जौ तील एक थाई चावों, शंख घंटि और बाँकि पुजपाठक समान पधान ज्यूक धुरौटी महाव वाल खनाक गोठ पुरबाक दनाक कुंण पारि भलिकै सजै दी ! और पुजपाठ शुरू करि दी !
आघिल दिन फिर बामण ज्यू रात्ति ब्याणकैं नै ध्वे संद्या पुज करि बेर आपुण झ्वल कानिम टाँकि बेर लम्ब खुटाँल पधानुकि बाखइ हैं हिट दी ! पधानुकि बाखइ पूजते ही बामण खूब आदर सत्कार हौय ! उवीक बाद बामण ज्यूल टिक पिठ्याकि थाई, आठ दसेक तिमिलाक पतेल, जँण चारेक फूल पात और मुणि जौ तील एक थाई चावों, शंख घंटि और बाँकि पुजपाठक समान पधान ज्यूक धुरौटी महाव वाल खनाक गोठ पुरबाक दनाक कुंण पारि भलिकै सजै दी ! और पुजपाठ शुरू करि दी !
उदान भ्यार खोईभिडाक दान बै जोरकि आवाज ऐइ ! पैलाग हो पधान सैप ! फिर
धम्म कनै आवाज ऐइ ! पधान सैपुल मोहरिम बै भ्यार हैं चानैं कोय ! किलै रे
मधनियाँ तैहणि सिद्ध बटाक बाट झन ऐयै कै रौछ के ? अबटां अबटां सौटकट !
ग्यों च्याप्नैं आनैंहलै ! मधनियल जबाब दी ! अब के बतों बाबसैप भैंसैल आज
रात्ति टैम पारि सौयै ना ! पै जब एक पौसि रै च्युहुणयै, तब जबेर धो धो एक
थ्वप दूधक दी व्वील ! रै दगणि सात खुन मरचाक च्युहुणयै दी फिर लै रत्ति भर
खोंसैंनि ऐइ ! जाँणि कैकि कुड़ि इकौर लागी ? यसि जबरदस्त नजर लगाहणि ! और
तुमौर जबाब मिल बेई व्याव कनै, रात्ति दब्बड़ अयै कैबेर तब सारिक बाट फाव
मारनैं आय हो ! पधान सैपुल मजाकाक अंदाजम कौय ह्य लियो ! अब पुच्छयारुंक
भतेर पन लै नज़र/हाक पसी गेइ तो हमार जसाँक के हौल ! चल फूकमार ह्यों
बातूंकैं झट्ट कनैं यौं पौराक चाखम बै चार कुर्सी और पौरक गोठ बै एक टेबिल
गाड़ि बै धुरौटकणि धरि आ ! हम लै वैं आँरयूँ !
अब लियो जल्दबाजी
चक्कर में मैं मदनियौक परिचय दिणे भुलि गोय ! मधनियौक असली नाम हौय मदन
सिंह चौतीस पैंतीस सालौक गबरू ज्वान ! मधनी तै उवीक प्यारक नाम हौय ! मदन
सिंहल लै १८ साल बटि अबतक जाँणि कतुक प्रकाराक कामधंध कर ! पर कैमजिलै सफल
नि हौय ! या कओ उवीक भाग्यैल सांथ नि दी ! सीअ पैली बकरूंक धंध कर द्वीय
पाठ ल्याय जो हनैं हनैं बारेक है गआय ! एक दिन ग्वाव लि जाई में दिन्नैं
में बाग द्वाब लाग जब्ता उवील एक बाकौर और द्वीय पाठ दँणकै दी ! उनदिनां
मदन सिंहक ब्या लै नि हई हौय ! मदन सिंहकि इजैल कौय कि च्यला ! ह्य बागौक
के भरौस कधिनैं ते पारि जै जैअ लागल ! बेच दे ह्यों बकरांकैं ! के और काम
करि लियै ! ख़ाँहणि ख़ेतुंमें नाज हई जाँ ! बकार बेचीयाक डब्लूँक मदन सिंहल
चौबॉटम चार भिड़ चिंणवैबेर एक चहाकि दुकान खोलि ली ! उमैं लै उधारि शुरू है
गेई ! उवीक बाद चूवौक सटौक लूंण लै बाँट ! अब के बतौं के के करअ के नि कर !
हाँ भय्या ! परबेर बै जै मदन सिंहकि भलि चलि रै ! जाधिन बै
उवीक आँग द्यप्त आय ! मदन सिंहक आँगक द्यप्तै कैं टिकौंण मिलते ही मदन सिंह
पुच्छयार है गोय ! पर फिर लै रोज आपुण गोर बछाँक और बलदूँक ग्वाव जाँण नि
छवद ! अब लियो इथाँ मैं मदन सिंहकि बात बताँणम रै गोय ! उथाँ पोस्ट ऑफिस
खुलि बै तैयार है गोय ! बामण ज्यूल लै सबूँक मुनाव पारि पिठ्या लगाय ! फिर
शुरू शुर अलम्वाड बै आई डाकधराक ठुल सैपक कानम कौय सैप कैं मेरि लैकि क्वे
नौकरी छ तो बताओ ! सैपैल कौय पंडित जी हम तुमकैं के दि सकनेर हौय ! नई नई
पोस्ट ऑफिस खुलि रौ य फिलहाल तीन चार महिण तक सिर्फ पोस्ट मास्टरैकणि
पोस्टमैनी समावंण पड़लि ! हाँ एक दोहार पोस्ट ऑफिस तक डाक ल्याणी लिजाणी
डाँकहलकार चैं उवीक इन्जाम लै आज्जै करणों हो ! तुम य काम करनू कछा ज़ब्ती
हमार येतिक काम पुर है जाल ! बामण ज्यूल घरकणिंक नौकरी देखि बै तुरन्त होई
करि दी !
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