
"छोड़ मधनियाँ बल्दक पुच्छड़" भाग (३)
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
भाग (२) है अघिल
अब नौकरिक बात पक्क करि बै बामण ज्यू घर हैं बाट लै गआय! और बाट
पन आपुण ख़यालुंमै सोचनैं आय कि मेरी बामणिकि जुबानम तहिं साक्षात् माँ
सरस्वति बैठी हनैलि जँहीं उवील कौय कि "तहाँ नौकरी इप्पनैं मिल जानि"! अब
य जसी लै हौय पै म्यार देवैल बामणिक पुकार सुणि ली! सोचन सोचनैं बामण
ज्यूल कहीं य तीन मैलक बाट पार करि दी खुद उनुकैं लै पत्तै नि चल! उनुकैं
यअस लाग जस्सै पधानुकि कौंख्याडि बै उनुल आपुंण दोहर खुट सिदद आपुण पटागंडँम धर !
बामण ज्यूक पटागंडँम पूजते ही उनारि ठुलि चेलिल खोई भिड़म बै ठडि बै! धात लगई !
ओ ईजा ! ओ इज !
दूर बै आवाज ई --- ऊऊऊ... ! के कमछैं ?
"बाबू ऐ गईं वे दब्बड़ आ" इदान बै फिर उनरि चेलिल धात लगई !
हो होई ऐ गोई ! अब बामणि ज्यूकि आवाज साफ साफ सुणाईं दी !
बामण ज्यूक पटागंडँम पूजते ही उनारि ठुलि चेलिल खोई भिड़म बै ठडि बै! धात लगई !
ओ ईजा ! ओ इज !
दूर बै आवाज ई --- ऊऊऊ... ! के कमछैं ?
"बाबू ऐ गईं वे दब्बड़ आ" इदान बै फिर उनरि चेलिल धात लगई !
हो होई ऐ गोई ! अब बामणि ज्यूकि आवाज साफ साफ सुणाईं दी !
जब तक बामण ज्यू हाथ खुट ध्वे बै आपुंण चौंथरम भैबेर थाकि बिसाछिं ! उतुकै देर में उदान बै बामणि ज्यूल ले खोई भिड़ाक दान पारि भरी घाक डाल बिसाते ही कौय लै चेली इमबै द्वीय आंठ हरि घा छान हैं लिजा और गैरीम मेंबै घुस्यलैल एक पू ऐराव लमै बेर यै दगड़ि उकैं भलीभाँ राइ बै भैसाक और थोरिक मुखाड़ लफाइ दियै! मैं तहाँ लै अध्याँण धरनु! बाकिं घाक डाल मैं व्याखुलिकि इकोइ हैं छान धरि औंल! जा दब्बड़ जा! एतुक कई बाद बामणि ज्यु चौंथराक सीअ मुड़ाक सिणी में भै गेइ ! बामणिक बैठते ही चौंथरम बैठी बामण ज्यूल कौय बामणि नौकरि मिलिगे वे य नई डाकघरम डाँक ल्याणेकि लिजाणेकि नौकरी! और सरकारि बार त्योहार इतवारैकि छुट्टी लै छू! दगडै जजमानि लै है जालि खेति पाति गोर भैंस सब दगड़ दगड़ समाई जैंल! अब हमार लै नानतिन सैंती जैंल! ड्युटि भो बै शुरु छू!
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