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लागुछ कुमाऊँ कतुक प्यारा


लागुछ कुमाऊँ कतुक प्यारा।

(रचनाकार: जोगा सिंह कैड़ा)

वारा कुमाऊँ नैपाल पारा
बीच बगूंरै काली की धारा।

मुंस्यारि वारा जोलजिवि पारा
बीच बगूंरैे गोरी की धारा।


मिल सरयू गोमती बागेसरा
राम गंगा जागी रामेश्वरा।
 
पांच बैणियाँ स्योनि सिंगारा
काली नदी को बल अपारा।

कोश भटकी लागी किनारा
रामगंगा गगास सुन्दर धारा।

हरियाँ डाना गाड़ गध्यारा
लागुछ कुमाऊँ कतुक प्यारा।



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