
ढुंग
रचनाकार: जोगा सिंह कैड़ा
गाड़ में ल्वड़ छै
डाना में चट्टान
धुरि क पाथर छै
मंदिर में भगवान्।।
चाख में चाक छै
गड़ा बिच वड़
मकान मुणे सै छै
रश्यां सिल ल्वड़।।
भिड़ो क ढुंग छै
चुलो को गल्याट
सबेली कानश छै
घटाक द्वी पाट।।
गध्यारो को रेत छै
आंगनों पटाल
ख्योतारक गोव छै
यों नों त्यार बताल ।।
क्वे तिकें तोड़ला
क्वे फोड़ि कमाल
क्वे तिकें पुजाला
क्वे कुड़ी बनाल।।
क्वे मैल छुड़ाला
क्वे ठोकर लगाल
जो त्यर भाग होलो
पारस लै बताल।।
के अपगुण नि भाय
ढुंगा तू तो संत भये
यों नौं धरनी लोगोंक
फैलाँ किलै पड़ी गये।
रचनाकार: जोगा सिंह कैड़ा
गाड़ में ल्वड़ छै
डाना में चट्टान
धुरि क पाथर छै
मंदिर में भगवान्।।
चाख में चाक छै
गड़ा बिच वड़
मकान मुणे सै छै
रश्यां सिल ल्वड़।।
भिड़ो क ढुंग छै
चुलो को गल्याट
सबेली कानश छै
घटाक द्वी पाट।।
गध्यारो को रेत छै
आंगनों पटाल
ख्योतारक गोव छै
यों नों त्यार बताल ।।
क्वे तिकें तोड़ला
क्वे फोड़ि कमाल
क्वे तिकें पुजाला
क्वे कुड़ी बनाल।।
क्वे मैल छुड़ाला
क्वे ठोकर लगाल
जो त्यर भाग होलो
पारस लै बताल।।
के अपगुण नि भाय
ढुंगा तू तो संत भये
यों नौं धरनी लोगोंक
फैलाँ किलै पड़ी गये।

जोगा सिंह कैड़ा
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