भाल् नानतिन
करौ हिसाब पाई-पाई,
जन दिया कैकें गाई,
आपस में छन सबै भाई-भाई।
भाल नानतिन,
लिखन् पड़नान,
वी कन गुड़नान्।
योयी छ भलाई।
मै बाबु ल्हिनी उनरि बलाई।।
भल नानतिन,
खेलनान् खेल।
खेल-खेल में, बडूनान् मेल
सिकि ल्हिनी अक्षर ढाई।
के नि हुनि फिरि कठिनाई।।
मन लगै काम करनान,
बुराई लिजी डरनान्।
भ्वलक् काम आज,
आजक् अल्ले करनान्
काम में नी हुनि ढिलाई
एथें कूनी जग भलाई।।
पड़ि ल्यखि अफसर ह्वाल,
जीवन भरि स्याव कराल,
देशकि स्याव करि बेर,
अघिल कै बड़ाल।
सपै द्याल दुहाई।
योई छ: असल कमाई।।
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घनानन्द पाण्डे 'मेघ' |

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