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मां .....काम किले नी कर?

 
जोगा सिंह कैड़ा












कुछ यादें बचपन की।

मां .....काम किले नी कर?

बेटा ...( हर रोज नया बहाना खोजता था मैं)
यादे नी रइ।
अल्ले करुल।
कौपि हरे गे।
मीकेँ टैम नी मिल।
मनें निकर।
मीकेँ नी औन क।
मुनेपीड है रे ।
थोड़ी देर में करुल क।
दोस्त ऐरोछि।
खेलूँ रौछि।


मां...आब करि ले पै ....

बेटा...भुख लागूँरे खै बे करुल

नींन लागूँरे

मां.....से जा पै..... करी है त्विइल काम

(मां सब मान जाती थी। 
फिर एक दिन पिता जी ने समझाया .... 
मेरी जिंदगी बदल गयी)

जोगा सिंह कैड़ा

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