
--:हमार काक (चाचा):--
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
हमर बाबुक नान भाय (भाई) हमार काक एक लंब ट्यांग ( lanky) जा लौंड (लड़के) भाय।
हमन दगै गिडु (बौल) खेलणी हमार कान उचेड़नी(खींचने वाले)हमन कं बाबुक,इजैक और बड़बाज्यूक मार बै बचूणी ,हमन कं कौ कौतिक (मेले) में लिजाणी हमन कं आपण कान (कंधे) में उठूणी,बैठूणी हमर काक भौत्तै गिजूणी(चिढ़ाने)मैस भाय।
हमर इज,जेड़ज काक थै डरनेर लै भइन कबै कबै।
होलिन में काक सबन कं भिजै दिनेर भाय हमन कं लै नि छाड़नेर भाय।
हमर इज और जेड़ज जे लै पकालिन(पकाती थीं)लूण(नमक) चाखण हुं काक कं बुलुनेर भइन।
काक लै रिश्याक फ्यार(रसोई के चक्कर)लगूनै रुनेर भाय।
हमन दगै गिडु (बौल) खेलणी हमार कान उचेड़नी(खींचने वाले)हमन कं बाबुक,इजैक और बड़बाज्यूक मार बै बचूणी ,हमन कं कौ कौतिक (मेले) में लिजाणी हमन कं आपण कान (कंधे) में उठूणी,बैठूणी हमर काक भौत्तै गिजूणी(चिढ़ाने)मैस भाय।
हमर इज,जेड़ज काक थै डरनेर लै भइन कबै कबै।
होलिन में काक सबन कं भिजै दिनेर भाय हमन कं लै नि छाड़नेर भाय।
हमर इज और जेड़ज जे लै पकालिन(पकाती थीं)लूण(नमक) चाखण हुं काक कं बुलुनेर भइन।
काक लै रिश्याक फ्यार(रसोई के चक्कर)लगूनै रुनेर भाय।
जब काक पढ़न हुं भ्यार न्है ग्याय तो हम सब नानतिन भौत्तै
गगसी (याद में उदास) गयां हो।
काक हमन कं पढ़ुनेर लै भाय।
फिर काक नौकरी में न्है ग्याय और हमार लिजी और लै दूर है ग्याय।।
जब छौ छुट्टीन में उनेर भाय तो पुर घर हुं लुकुड़(कपड़े)हमनहुं मिठ्ठै ,बिस्कुट, नमकीन लै ल्यूनेर भाय हो ।
कत्तु किसमाक गिडु हमन हुं हमार काक ल्याय हो।
गगसी (याद में उदास) गयां हो।
काक हमन कं पढ़ुनेर लै भाय।
फिर काक नौकरी में न्है ग्याय और हमार लिजी और लै दूर है ग्याय।।
जब छौ छुट्टीन में उनेर भाय तो पुर घर हुं लुकुड़(कपड़े)हमनहुं मिठ्ठै ,बिस्कुट, नमकीन लै ल्यूनेर भाय हो ।
कत्तु किसमाक गिडु हमन हुं हमार काक ल्याय हो।
जब काकौक ब्या भौं तो औरि है गोय हमन हुं काखि लि आय काक।
हमरि काखि लै हमारे लिजि एक दगड़ू और इज जैसी भइन हो।
काक कं हम पाणि जौस याद करबेर निश्वासी जानुआय लै।।
अरुण प्रभा पंत
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