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छोड़ मधनियाँ बल्दक पुच्छड़ - 5



"छोड़ मधनियाँ बल्दक पुच्छड़" भाग (५)

लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल


ऐल तकाक कहानी में आपुँलोगुँल पढ़ौ कि कसिक मरन तरनैं ! जसी तसी मदन सिंह उडानैं ! भुभानैं आपुँण छनाक गुठ्यारम तक पुज ! और बामण ज्यू आपुँण घर !
अब आघिन !
 
मदन सिंहैल गुठ्यार में पुजिबेर फटाफट बल्द गोठ गुठ्याय ! जल्दबाजी में उनकैं उनार दौंण पारि लै नि बाँध् और सिद्ध उतिकि फाव आपुँण घराक पटाँगणम मारि !

और पटाँगणम पुजते ही ह्वाट ह्वाट कनैं खुद लकड़ी गोय ! मदन सिंहैकि आवाज सुणिं बेर जहाँलै उव्वीक ईज मालखन बै भ्यार आछिं तहाँलैक उव्वीकि सैणिं गोठ बै पाणिंकि लोटी लिबेर भ्यार ऐई ! जस्सै उवील गोठाक महाव बै भ्यार चहाय ! उ लै लकड़ि हुई हाथ खुट छोड़ि बै चौताँण पड़ि आपुँण ब्यौलैकैं देखि बै रणीं गेई ! उकै लै बग्घुअ जै जे लागनैहलि उ लै ओ ज्यू ओ ज्यू ! ओ सासू ! ओ सास ! कनै गोठमहाव हबै आघिन नि बड़ि ! ऐतुक में चाखमकि धेईम में बै मदन सिंहैक इजैल लै " कैल खाय रे खड्यौणों तुमकैं ? " कनैं पैलि त्यूड़ चौथरम और दोहिरि त्यूड़ गोठम्हावाक आघिन मारनै ऐई ! और फटाफट आपुणिं ब्वारिक हाथ पारि बै पाणिंक लोटी छिनि बै एक पौस पाणिंं ब्वारिका मुखाड पारि " छाई हौ " ! कनै मारि और बाँकि लोटियैक पाणिं मदन सिहांक मुखाक तरूफ हैं छलकै दी ! जस्सै चस्सकनैं द्वीयनुकैं मुखाड़म अरड़पट्ट पाणिं पडौ जबता द्वीयै पल्लोकाक सल्लोक ऐ गआय !
होश्म आई बाद ब्वारिल मदनसिंहाक तरूफ हैं आँउवैल इसार करिबै आपुँण सासू हैं डरनै कौय ! ओ ज्यू इंनुकैं के हौय ! सासूल ब्वारि डर भाँपि बै कौय " देवाक बावन रुप हाय ! और छअ छिद्राक छप्पन ! हनौल पै के !
कणीं बुलाँणीं हौलौ तो आपुण गिचोैल कौल ! खालि बाट पनौक छअ झप्यौट हलौ जबता तो पाअ चौबाट्म उवीक नामैकि खिचड़ि देई बाद आफ्फि नहै जाल ! मदनसिंहैल फिर एक बार जोर ह्वाट करि ! अब उवीक पराणिं समझ गेई कि मघनियाँ अब घर पुजिगछै ! मतलब आज मरन मरनैं बचि गछै !
य सब हल्ल गुल्ल सुणिंबै आधुक बाखईक मैंस इकट्ठ है गअाय ! चार मैसुकैं देखिबै अब मघनसिंहैंकि मुणिं हिम्मत बढ़ि गेय ! अब उ आपुँण पुच्छयार रूप में ऐ गोय ! और जोर जोरैल कौंण भै गोय ! त्वील मकणिं के ठारि रौ रे टिकौंण खाई छू रे मैं ! चल आपुँणि खिचड़ी और एक बिड़ि ले और आपुँण बाट पकड़ ! ऐतुक कई बाद मदन सिंह नरसुद्धि में ऐ गोय ! और उव्वील आपुँण इजैहैं एक मुट्ठी चावों मुणिं माँस एक हल्दौक गाँठ, एक मर्चौक खुन और द्वीय कंकर नूणाँक एक तिमिलाक पतेलम धरिबै मँगाय !

और फिर उमैं आपुँण खलेतम में बै एक बिड़ि गाड़ि बै उव्वीक माथ बै धरि दी ! और उत्तीकैं ठड़ि भुवन सिंह हैं कौय ! लै रे भुवन सिंहां य खिचड़ि पा चौबाट्म लफाई आ और य बिड़ि उतै जगैबै धरि ऐयै ! भुवनसिंह खिचड़ि उठाई चौबाटाक तरफ हैं बाट लै गोय !
दै बज्जर ! आग लागो मेरि फाम कैं !
 

ह्य लियो ! मैं तुमुकैं भुवनसिंहौक परिचय दीणैं भुलि गोय! भुवनसिंह ! मदनसिंह पुच्छयारौक दगड़ि हौय और छः मसाण पुजणम् मधति हौय ! यौ मधत करिया बदल में मदन सिंह उकैं लै ठीक ठाक दक्षिण दिवै दिनेर हौय !
 
य हौय खिचड़ि दिणीं भुवन सिंहौंक परिचय !
भुवनसिंह जस्सै खिचड़ि दी बै आय सिदद खोईभिणम धरि पाणिं कसिनिक पाणिंल हाथ खुट ध्वे बेर मदन सिंहाक मुखाड़पारि पुज !
अब मदनसिहैल पूछ ! दी आछै खिचड़ि ?
भुवनसिंहैल जबाब दी खिचड़ि तै दी आई ! पै क्वे सआर (पक्क) छू ! मैल कतुक सलाई क्याड़ पाड़ि दी ! फिर लै चौबाटम बिड़ि नि जगि !
मदनसिंहैल लम्बी साँस ली बै कौय अच्छा ! मैं समझि गोयू यैक सब रागूँ कैं ! य सतनौंज खाणिं छू ! यैक उपाय पोरूहैं अमूसिक दिन करुल !
क्रमशः भाग (५)

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