
"छोड़ मधनियाँ बल्दक पुच्छड़" भाग (७)
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
हरदा कैं व्याखुलि एक चक्कर आपुँण घर आँणक न्यौत दी बै मधनसिंह घर ऐंबै
पुरदिन बेचैन घुमने रौय ! डरा मारि बल्दूँक ग्वाव लै नि गोय ! उ दिनभर
सोचनैं रौय कि घुघुंरु आवाज जे लै हई ! पर उ " छोड़ मघनियाँ बल्दौक पुच्छौड़ "
कणि आँखिर हौय को !
और अगर मैं कैकणिं आपुँणि बेचैनीं कैं बतौंला तो मैंस मेरि हैंसि उडैंल !
अब बस हरदाक सहार हौय !
उदान जस्सै हरदा घर पुजौ जबता उव्वीकि ब्वारिल मदन सिंह जबाब सुणें दी !
और अगर मैं कैकणिं आपुँणि बेचैनीं कैं बतौंला तो मैंस मेरि हैंसि उडैंल !
अब बस हरदाक सहार हौय !
उदान जस्सै हरदा घर पुजौ जबता उव्वीकि ब्वारिल मदन सिंह जबाब सुणें दी !
जबाब सुणते ही हरदाल मनमनैं हैंसने कौय ! य केसैल घुमिफिरि बै मेपारि
आँणछी ! चल भौल हौय घुमि फिर बै नि आयौ तो सिद्द ऐ गोय ! फिर हरदाल आपुँण
ब्वारि हैं कौय ! तू एक घट्टाक चहा धर ! फिर में फट्टैक घुमि आनु मलिबाखई !
दव्बड़ ऐ जौंल ! आज ब्यावाक खाँ हैं पकाहणिं लकाड़ लै फौड़ड़ि फिर ! बाखईक
दुकानम बै के ल्याण छै तो बतै दिये ! ब्वारि कौय:- एक चहापत्ति और एक
गुडैकि भेलि ली अया ! चहापत्ति ताजा वाल ल्यया ! यौ वाल फार नि हौं राय !
जरा देर बाद हरदा चहा पी बेर मलिबाखई हैं बाट लै गोय ! बाट पन उ कहियैं डाक
वाल पण्डित ज्यूक बारे में सौचि बै हैसंण रौय ! और कहियैं मदन सिंहाक बारे
में सोचि बै हैंसण रौय ! किलैकि उधिन हरदा आपुँण चेली कैं सराश पुजाँहैं
जाई हौय ! दिनादिनी वापस आँणमें उकैं लैं देर है गेई ! काईगध्यार हबै पैलि
रमदा हौलदारैकि दुकान कैं पुजँण तक उकैं लै घुप्प अन्यार है गोय ! रमदा
दुकानम् पुजते ही हरदाल राम राम हौलदार सैपकनैं घात लगई ! रमदा पूछ य रात
पड़ि कति बै आमछै हरदा आज ! हरदा जबाब दी चेलि कैं सराश पुजाहैं जै रोछी !
अब मे पारि के उज्याव लै नहैं ! तुम मकणि एक बन्डल बीड़ि सलाई दी दियो !
रमदा हौल्दारैल ! बिड़ि सलाई दिनैं हरदा कैं बताय कि अल्लै जरा देर पैलि
पण्डित ज्यू घुंघुंर वालि लट्ठी कै छम छम बजानैं जाँण रयीं ! तू लामि चाल
लगा ! तो काई गध्यर है बै पैलिकै तु उनकैं छौंपि लिलै ! ऐतु सुणते ही हरदाल
बिड़िक मण्डलाक डबल दी ! और घर हैं फुल तेज चाल करि दी ! जरा देर तेज तेज
हिटी बाद हरदा कैं छम छमकि आवाज सुणाई दी ! हरदा समझि गोय कि पण्डित ज्यू
अब ज्यादा दूर नहैं उवील और तेज चाल करि ! अब काई गध्यराक पार हरदा कैं मदन
सिंहैंकि आवाज हिट हँसिंया ! हिट कईया ! सुणाई दी ! अब हरदा उनार पिछाड़ि
बाट लै रौय ! जरा देर बाद पण्डित ज्यू " छोड़ मधनियाँ बल्दौक पुच्छौड़ " कौंण
शुरु करि दी ! हर दा लै सी उनार पिछाड़ि बै सब देखनैं सुणनैं ! हैसनें आय !
अब सोचन सोचनैं ! मन मनैं हैंसन हैंसनैं हरदा मदन सिंहाक घर पुजि गोय ! मदनसिंहैल पैलिकै बै एक बोरियौक कट्ट हरदाक बैठणाँक लिजी खोईभिणम बिछाई हौय ! हरदा आते ही मदन सिंहैल यौस महसूस कर जस्सै क्वे काणें कैं आँख मिलि गआय !
मदनसिहैल कौय आ यार हर दा ! बैठ ! और मेरि समस्याक शमधान कर ! मकणि बेई ब्याव बै घेरि रौ यैल ! आँखिर य हौय को और के चाँ ? मैल तै यैकि नामकि खिचड़ि और बीड़ि लै दी हालि ! जबरदस्त हौय यार हर उ ! बिड़ि नि जगड़ दी उव्वील चौबाट्म !
मैं तहियैं समझि गोछी ! य जब्बर छू ! जब म्यार समझ मैं य नि आय तो तब मैं तुमार पास आय ! तुम कछाँ जबता आज ब्याव दुलैंच लगों पै ! हरदा कौय खबरदार ! खबरदार ! हर बाताक लिजी देव दोषि नि हौंन रे ! तुम आपुणैं !
रोष !
तोष !
दोष !
रोज खुदै घेरि रछाँ !
और दोष देबै कैं दिछाँ !
तू कधिन तक तू आपुण करमुंक दोष देवाक खवरम धरलै ?
खबरदार !
दौहक लै र रे तकैं सौंकार ! जा पा आपुँण बामणाँक ! घुन और कुहुन धोईयौक पाणि पी ले ! सब ठीक है जाल !
ऐतुक कई बाद हरदाल आपुण घुनम मुन्ई टेकि दी !
क्रमशः भाग (८)

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