करन त भौत कुछ चँऑछ्यू मगर ....
लेखक: दिनेश भट्ट
लेखक: दिनेश भट्ट
द्वि ऑखर
आज के लेखनाक मन करन लागिर्योछ. मौक ल छ, पछिल कै अगर अपनि जीवन मे देखू,और फर्कि बेर चँ त ,पच्चीस साल पढन,योग्यता हासिल करन डिग्री जमक्यून मे लगाई.एक सुरक्सित,सम्मानजनक नौकरि खोजन,पान् मे कतुक टैम लागि ग्यो,कतुक उज और बखत ए काम मे न्है ग्यो. नौकरि मिली,ब्या है ग्यो गिरस्ती और नौकरी क तमाम झम्यालो मे फसि रै गयू.करन त भौत कुछ चँऑछ्यू मगर ....
खैर अगर मे अपन समाज खिन योगदान और अपनि भूमिका कि बात करू त बतून लैक के खास हासिल जस न्हाति. असल मे क्वे ले मैस क व्यक्तित्व बणून या गढ़न मै, समाज,आस पास क वातावरण, परिवार कि सामाजिक आर्थिक हालात् और तै बखत् कि राजनैतिक हालात ,नेतृत्व कस छ कसि दिशा दिन लागिर्योछ, वगैर ले निर्धारक हुछ. मैकै इस ले लागू कि हम लोन अपन समाज और इलाकाक् लिजी के ठुल काम,यादगार काम करनाक अवसर नै मिलना. हम लोग नौकरि,परिवाराक झम्यालो मे फसि बेर अपन बखत बरबाद करि दिनू या हमर टैम बरबाद है जँ छ. अनेक बार हमन के प्रेणा या क्वे इसिउज नै मिलनि कि हम के नयँ, ठुल,प्रेणादायी काम करि सकू. उसिकै के ठुल ..के नान् काम हँछ यो ले बहिसबाजी क बिषय है सकू.
हमर समाज मै जो नकारात्मकता छ,कुन्ठा,रीस,भेदभाव,हिन्सा,छ,यो ले कैसै ले मैस कै अघिल बढ़न ,ठुल काम करन खिन रोकछि. मै अगर अपनि बात करू त एक भल मैस,भल टीचर,भल नागरिक बणन कि कोसिस मै रूछु, कतुक सफल छु के नै कै सकीन. उसिकै मेरि नानि नौकरि,नानि भूमिका भै.लेकिन एक संवेदनशील इन्सान,एक पढी लेखि इन्सान हुनाक् वील सोचन पड़ल कि हम के करन लागिरया,और के करि सकनू,

दिनेश भट्ट, सोर पिथौरागढ़
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