
दस कुमाऊँनी दोहे
रचनाकार: भुवन बिष्ट
हाथ जोडी विनय करूँ, दिये हामक ज्ञान।
माता त्यौर सदा सदा, करनी सब गुणगान।।
दूसरों लागि बे हुसुक, हैं गौय उँ मलिं धार।
कमैं आप बिन योग्यता, नि हूँन बेणा पार।।
फैलि गौ आज जगत में, हुसुका हुसुक बहार।
घरों के आपण भरहूँ, जग लुटुहूं तैयार।।
धात लगा सदा दुणिं में, खूब मचा जो शोर।
छिपों आपण अवगुण के, मन में जै ठुल चोर।।
लुपड़ी चुपड़ी जो लगा, पड़ी जाँछ जब काम।
Jछन जो लैं नैं कमैं, उक एगे के फाम।।
दूसरों हुसुक लागि बे, मन के जो भटकाँछ।
बढ़नी रोज दुःख उसी, फिर सदा उँ पछताछ।।
देखी दौहरक अवगुण, किलें करौं उपहास।
गुण के आपण खोजलें, होलि सफलता पास।।
प्रेम भाव सब बाँटि ल्यो, जग बॉल खुशहाल।
हौल न बैरी क्वे कमै, काटि जाल सब जाल।।
ज्ञान पाणै लिजी सबै, खर्च लाखों हजार।
खोजो मनक भितेर सब, खुली जाल सब द्वार।।
सेवा जीते जी करो, मरि बे करो न भोज।
दौलत खुब बगाँ रछ, सुखीक करछे खोज।।
हाथ जोडी विनय करूँ, दिये हामक ज्ञान।
माता त्यौर सदा सदा, करनी सब गुणगान।।
दूसरों लागि बे हुसुक, हैं गौय उँ मलिं धार।
कमैं आप बिन योग्यता, नि हूँन बेणा पार।।
फैलि गौ आज जगत में, हुसुका हुसुक बहार।
घरों के आपण भरहूँ, जग लुटुहूं तैयार।।
धात लगा सदा दुणिं में, खूब मचा जो शोर।
छिपों आपण अवगुण के, मन में जै ठुल चोर।।
लुपड़ी चुपड़ी जो लगा, पड़ी जाँछ जब काम।
Jछन जो लैं नैं कमैं, उक एगे के फाम।।
दूसरों हुसुक लागि बे, मन के जो भटकाँछ।
बढ़नी रोज दुःख उसी, फिर सदा उँ पछताछ।।
देखी दौहरक अवगुण, किलें करौं उपहास।
गुण के आपण खोजलें, होलि सफलता पास।।
प्रेम भाव सब बाँटि ल्यो, जग बॉल खुशहाल।
हौल न बैरी क्वे कमै, काटि जाल सब जाल।।
ज्ञान पाणै लिजी सबै, खर्च लाखों हजार।
खोजो मनक भितेर सब, खुली जाल सब द्वार।।
सेवा जीते जी करो, मरि बे करो न भोज।
दौलत खुब बगाँ रछ, सुखीक करछे खोज।।

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