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हमरि आमैकि घड़ि (दादी की घड़ी)

 

हमरि आमैकि घड़ि(दादी की घड़ी)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत

खुट खुट,तौ ठूंग मारणौ शिटौव ठिक्क रत्तैक साड़चार है गोन्हांल।
हमर घर ऊंचाई में हुणा कारण वां सूर्ज भौत रत्तै देखि जां हो। और वांक चाड़ लै रत्तै उड़ बेर आपण काम धंध में लाग जानि हो।
हमरि आम् जांण जांनेर भै कि ऐल इतु बाजि रौन्हाल।
हम नानछिना समझछी कि हमरि आम् जरुर आपणि घड़ि लुकै राखन्हैल और फिर कून्हैल कि इतु बाज ग्यान।
आमैक बातै निरालि भईन।
तौ घाम नै यो अनारौक बोटाक मलबै पुज गो ,ठिक्क ग्यार बाज रौन्हाल दोफरिक(दोपहर के)।
अरे ब्वारी जरा चहा बणा धैं म्योर मल ताव(ऊपरी तालू)सुक(सूख)गो,एल ठिक्क दोफरिक एक बाज रौन्हाल।
घड़ि में चानू ठीक एक बाज रुनेर भै।
ऐल म्योर दैण सोर(दाहिना श्वास)चलणौ ब्यालाक चार बाजणी वाल छन यो लुकुड़ ,बिस्कूण हटूनू हमार गौं में सूर्ज जल्दी छिप जां अन्यार हूण लाग जाल।
 


ऐसी हमरि आमैक घड़ि भै बज्यूण कभ्भै गलत नि भै हो, के कूंछा ।
रत्तै रत्तै गोरुक ड्वा ड्वांल आम् जाणनेर भै कि इतु बाजबेर इतु मिनट है गोन्हाल।
सब कुनेर भाय रम्मुऐक(राम दत्त) इजौक जौ सही टैम कैकी घड़ि लै नि बतै सकनि।
चार आंख वालि हमरि आम् अनपढ़ होते हुए लै भौत्तै जानकार और चौकन्न मैंस भै।
को मैस किहुं ऐल ऐरौन्हौ उ समझ जानेर भै।
बाबू ,जेठबौज्यूऔर बड़बाज्यू लै आमैक बरोबरी(बराबरी) नि कर सकनेर भै।
तौ वी भै जैल आठ बर्साक बाद आपण मैत भौत्तै कम गे और हमरै गौक बण बेर आंखिर में परम धाम लै पुज गे।
पुराण जमानैक पुराणिक बात पर सांच्चि।



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