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ओ अल्मोड़ै कि बान


ओ अल्मोड़ै कि बान
(रचनाकार: दिनेश कांडपाल)

एक पहाड़ि श्रृंगार रसैकि कविता.......

ओ अल्मोड़ै कि बान तू सुन छै चमचमान
य धमेलि क् फूना कैं तू इसि कै न फटकान
त्यर नाख की नथुलि का घुघुरु छमछमान
त्यर गलोबंद हैरौ य लाल बजारकि शान


ज्व़ानि क जोभन में तू पौन जसी जा न
देखि त्यार लटैक सब बुढ़ है गयीं ज़्वान
य खितखिताट त्यार रामगंग म पाणि आन
ऊंठू यास छै त्यार जस बुरांस फुलि डान
त्यार पिछौड़ क बूटां मे सुहाग तप तपान
फुलदेई त्यार में जसि धेई द्वार छैं छजान
बसंति पौन में देखि त्यर आंचोव कैं उडान
यों स्कूली नना क मन है गो रगबगांन
हात क पहौंचि ल तू कर न इसी शान
त्यर कपाव टिक लै मैं पैलिकै चौंहकान
हैंसि तेरि छू यसी जसी ह्यों हूं राति ब्यान
कुतकुता ऊंठू पर जस बुरांस फुल आन
यौ ज़्वानि क बौयाट में एकलै कैं नि जान
बटां घटां रुपै कि कुटुरि इसिकै नि छमकान

@दिनेश कांडपाल

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