ओ इजु मैं आब पटे गयूं
रचनाकार:जोगा सिंह कैड़ा
(मेरे स्नेही मित्र अशोक कुमार पन्त जी की रचना से प्रेरित हो कर
मन के भाव उमड़ पड़े और त्वरित रचना प्रस्तुत है)
ओ इजु मैं आब पटे गयूं
तुम जाया सड़का बाटा
मैं त धारों धार गयूं
ओ इजु आब में पटै ग्यूं।
तुम जाया सड़का बाटा
मैं त धारों धार गयूं
ओ इजु आब में पटै ग्यूं।

दुनगिरि बिनसर देखण
मैं त कतू बार गयूं
चार दिन मैं मुनस्यारी
चार दिन नैनीताल रयूं ।
जागेश्वर बागेश्वर
बैजनाथ पिनाथ गयूँ
एक दिन रानीखेत रयूं
ओ इजु मै आब पटैे गयूँ।
सोरे की गुरना देवी
गंगोलि की काली
दुनागिरी की भगवती
पहाड़े की रखवाली।
कोट में कोटे की मायी
चम्पावत में देखि बराही
नैनितालै की नैना देवी
नंदा और सुनंदा मायी।
मैं त कतू बार गयूं
चार दिन मैं मुनस्यारी
चार दिन नैनीताल रयूं ।
जागेश्वर बागेश्वर
बैजनाथ पिनाथ गयूँ
एक दिन रानीखेत रयूं
ओ इजु मै आब पटैे गयूँ।
सोरे की गुरना देवी
गंगोलि की काली
दुनागिरी की भगवती
पहाड़े की रखवाली।
कोट में कोटे की मायी
चम्पावत में देखि बराही
नैनितालै की नैना देवी
नंदा और सुनंदा मायी।

पांचों चोटी पनचूली का
बर्फानी त्रिशूल चै रयूं
काली गोरी धौली देखि
फिर मी रामेश्वर ऐ ग्यूं।
पहाड़े की माया देखि
ओ इजु मैं चाहिये रै गयूँ
ओ इजु मै आब पटैे गयूँ।
बर्फानी त्रिशूल चै रयूं
काली गोरी धौली देखि
फिर मी रामेश्वर ऐ ग्यूं।
पहाड़े की माया देखि
ओ इजु मैं चाहिये रै गयूँ
ओ इजु मै आब पटैे गयूँ।
ओ इजु मैं आब पटै गयूं।
जोगा सिंह कैड़ा

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