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म्यार गोंक पधान


म्यार गोंक पधान
रचनाकार: दुर्गा दत्त जोशी

हास परिहास....

म्यार गोंक पधान बेलि हल्द्वाणि बै ऐरौ।
चार पऊ रम, एक कंटर कच्ची लै रौ।

गोंक नानतिन सबै एकबोटि रई।
पधानाक वीलि थ्वाड़ बेइमी रई।

बिचार, खुद रमकि चुश्की लगों।
नानतिनन कें गोंकि कच्ची पिलौं।

भुलिया य पधान, शराबाकै वीलि बड़ौ।
अघिलकहिं बिधैैक लै बण सकों को जाणों।

य, जदिन बै पधान बड़ो हल्द्वाणी रौं।
गों में कभै कभार देखणैं जै ओं।

योजना बिलौक में बणें जुगाड़ में लागि रों।
आदुक खल्दी में धरण छन, आदुक लगौं।

म्यार गों में जो लै काम भई सब बेकारै गई।
गोंकि सड़क उधरि रै, नल सुकि रई।

बिजली तारक करैंट गैब छू।
स्याप, इस्कूलक भगवानै मालिक छू।

अस्पताल पताल जै रौ।
डाक्टर द्वि साल बै दिल्ली जै रौ।

जो लै समझदार छिया, यां बै भाजि गई।
बांकि पधानाक वीलि कच्ची में पगली रई।

दुर्गा दत्त जोशी, ०४-०७-२०१७

दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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