
शादी में मुसकलों की होतीथी अहम भूमिका
लेखक: भुवन बिष्ट
पूर्व में शादियों में पारंपरिक वाद्ययंत्रों का विशेष महत्व होता था। साथ ही परंपरा के अनुसार मस्थगोई (संदेशवाहक) अथवा मुसकलों (ममचहोई) का भी अपना एक विशेष महत्व होता था। उस समय गांव के एक विशेष बुजुर्ग अनुभव वाले व्यक्ति और सहायक को मुसकलों या संदेशवाहक बनाया जाता था। ममचहोई शादी के पहले दिन दुल्हन के घर जाकर बारात आने की सूचना देते थे तथा वहां की व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी लेते थे।
इनहें विशेष रूप से एक पीले कपड़े में जिसे दुनर कहा जाता था इस कपड़े (दुनर) में एक तरफ उड़द की दाल और दूसरी तरफ गुड़ की भेली की पोटली लकर दुल्हन के घर विवाह समारोह के पहले दिन भेजा जाता था। ये कंधे में दनर नशा दाशाजापपगबात मिट्टी की बनी (मटकी) जिसे शगुनी ठेकी भी कहा जाता था। यह शगुनी ठेकी दही से भरी होती थी और ऊपर से हरी सब्जियां रखी होती थीं, लेकर जाता था (दही को पवित्र व शगुन तथा हरी सब्जियों को खुशहाली एवं जीवन में हरियाली का प्रतीक माना जाता है) और इनके साथ एक शंख बजाने वाला सहायक होता था, जो शंख की ध्वनि से अपने आने की सूचना देते थे।
इनकी दुल्हन के घर में विशेष मेहमान नवाजी की जाती थी। ममचाहो शादी के दिन दूल्हा पक्ष को दुल्हन के। घर में हो रही व्यवस्थाओं की जानकारी देते थे। परंतु आज शादियों में आधुनिकता के कारण ममचहोई की भूमिका भी समाप्त होती जा रही है।

भुवन बिष्ट, मौना (रानीखेत), पो. चौकुनी जिला अल्मोड़ा

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