
य बखतैकि बात! दैअ य शराब!
रचनाकार: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपालदैअ!
य शराबाक ख्वार लै!
झन जोअ य दिन!
दीदी कैं भेटहैं आई हौय भै!
उ पारि झिमूंण जौस!
चिपटि गोय उवीक भिन!
पै! पै! के समझा तुम?
साव लै कम नि हौय!
उ लै आपुंण घर बै पुरि!
तैयारी करि बै आई हौय!
उवील आपुणिं कोहर्याई मुड़!
पुर एक अद्ध लुकाई हौय!
साव लै कम नि हौय!
उ लै आपुंण घर बै पुरि!
तैयारी करि बै आई हौय!
उवील आपुणिं कोहर्याई मुड़!
पुर एक अद्ध लुकाई हौय!
आपुणिं भिनैकि मनैकि बात!
उ साव पैलिकै समझि गोय!
कोहर्याइम लुकाई उ अद्ध!
दीदिक सामणिं! भिनैकैं दिखाई गोय!
उ साव पैलिकै समझि गोय!
कोहर्याइम लुकाई उ अद्ध!
दीदिक सामणिं! भिनैकैं दिखाई गोय!
अब के? के ना! धुत्ति!
भिन खुश! साव खुश!
अब के? तुम लोग लै!
आपुंण मन नि झुर्याओ!
कलयुगाक! साव भिन हाय सब!
बस रिस्त निभाओ!
भिन खुश! साव खुश!
अब के? तुम लोग लै!
आपुंण मन नि झुर्याओ!
कलयुगाक! साव भिन हाय सब!
बस रिस्त निभाओ!
और जो य पउ अद्धक रिस्त!
जब जब तुम! नि निभाला!
आपुँ लोग लै! त्रिचमैं वाई!
खूब जी भरि बै! गाई खाला!
जब जब तुम! नि निभाला!
आपुँ लोग लै! त्रिचमैं वाई!
खूब जी भरि बै! गाई खाला!
( " त्रिचम उदगार " ९:५० १० अगस्त २०१८ )

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