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खट्टे- मीठे काफल या बेबेरी (KAFAL)


खट्टे- मीठे काफल या बेबेरी (KAFAL):-
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(लेखक: जगमोहन साह)

काफल एक जंगली फल है। यह उतराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय और नेपाल में 4000 फीट से 6000 फीट तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों पैदा होता है। इसका स्वाद में खट्टा-मीठा मिश्रण लिए होता है।  इसे कहीं उगाया नहीं जाता, बल्कि अपने आप उगता है और हमें मीठे फल का तोहफा देता है। गर्मी के मौसम में पहाड़ के किसी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए दिखाई देते हैं। कई बेरोजगार लोग दिनभर काफी मेहनत से जंगल से काफल निकालते हैं तथा शहरों में अच्छे दामों में बेचते हैं।

काफल खाने के अनेक फायदे : यह जंगली फल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है। इसका फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक होता है।  मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है। इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।

इसके पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आँख की बीमारी तथा सरदर्द में सूँधनी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधीय पौधों के मिश्रण से निर्मित काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस तथा शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खाँसी तथा अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है। दाँत दर्द के लिए छाल तथा कान दर्द के लिए छाल का तेल अत्यधिक उपयोगी है.काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग में लाया जाता है। इस फल का उपयोग औषधी तथा पेट दर्द निवारक के रूप में होता है।

इसके फल के ऊपर मोम के प्रकार के पदार्थ की परत होती है जो कि पारगम्य एवं भूरे व काले धब्बों से युक्त होती है यह मोम मोर्टिल मोम कहलाता है तथा फल को गर्म पानी में उबालकर आसानी से अलग किया जा सकता है। यह मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी होता है। इसके अतिरिक्त इसे मोमबत्तियां, साबुन तथा पॉलिश बनाने में उपयोग में लाया जाता है। देवभूमि उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो उसकी यात्रा अधूरी है।

(प्रस्तुति: जगमोहन साह,लाला बाजार, अल्मोडा़)

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