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मडु, कोदा या मंडुआ (Finger Millet)


मडु, कोदा या मंडुआ (Finger Millet)
लेखक: शम्भू नौटियाल

मडु, कोदा या मंडुआ (Finger Millet) कोदा या मंडुआ वानस्पतिक नाम- एल्युसिन कोरैकाना (Eleusine coracana), यह कुल: पोएसी (Poaceae) के अन्तर्गत आता है। कोदा-मंडुआ या फिंगर मिलेट (Finger millet) अफ्रीका और एशिया के शुष्क क्षेत्रों में अनाज के रूप में व्यापक रूप से उगाया जाने वाला एक वार्षिक पौधा है। यह लगभग 4000 साल पहले से भारत में उगाया जाता है। यह हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में 2,300 मीटर तक की ऊँचाई पर उगाया जाता है। पौष्टिक गुणों से भरपूर कोदा (मंडुआ) उत्तराखंड के लोगों की शान व पौष्टिकता का खजाना है।

उत्तराखंड की परंपरागत फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है।  राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि का 85 फीसद भाग असिंचित होने के बावजूद यहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मोटे अनाज के रूप में जाने जाने वाले मडुवे (कोदे) ने सदियों पूर्व से ग्रामीण परिवारों का भरण-पोषण आसानी से किया है। इसका इस्तेमाल होता रहा तो लोगों को कई बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी। जापान में तो इससे शिशुओं के लिये खास तौर पर पौष्टिक आहार तैयार किया जाता है।

मडुवे को छह माह के बच्चे से लेकर गर्भवती महिलाओं, बीमार व्यक्तियों और वृद्धजनों तक सभी को दिया जा सकता है। मडुवा(कोदा) खाने में स्वादिष्ट पोष्टिकता से भरपूर निरोग अनाज है।  मडुवे(कोदे) का इस्तेमाल रोटी, सूप, जूस, उपमा, डोसा, केक, चॉकलेट, बिस्किटस, चिप्स, और आर्युवेदिक दवा के रूप में होता है।  भारत विश्व के टॉप 10 देशों में से नम्बर 1 पर हैं, जो सबसे ज्यादा मंडुआ पैदावार करने वाला देश है। मडुवे(कोदे) की रोटी खाने से शरीर में आसानी से कैल्शियम, प्रोटीन, ट्रिपटोफैन, आयरन, मिथियोनिन, रेशे, लेशिथिन इत्यादि महत्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्धक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।

मडुवा(कोदा) हृदय व मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी लाभदायक होता है। इसमें पर्याप्त पोषक तत्व होने की वजह से यह कुपोषण से बचाने में भी मददगार होता है। यह बाराहनाजा परिवार का मुख्य सदस्य है। देश के अन्य राज्यों में इसे रागी, नागली व कोदा इत्यादि नामों से जाना जाता है। उत्तराखंड में 136 हजार हेक्टेअर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। यह गरीब के घर संतुलित आहार का भी आधार है। इसकी बहुपयोगी फसल अन्न के साथ-साथ पशुओं को चारा भी प्रदान करती है।

मंडुवे से बिस्कुट, रोटी, हलुवा, नमकीन, केक जैसे उत्पाद तैयार किए जाते हैं। पहाड़ में इसकी खेती जैविक खाद से होने के कारण अत्यधिक मांग है। गरम तासीर वाले मडुवे का सेवन पहाड़ में नवंबर से मार्च तक प्रमुख तौर पर किया जाता है। मंडुवा बिगड़े मौसम चक्र में बारिश पर निर्भर खेती के लिए टिकाऊ विकल्प है। भारत मे मंडुवे की मुख्य रूप से 2 प्रजातियां पायी जाती है जिसे Eleusine indica जंगली तथा Eleusine coracana प्रमुख रूप से उगाई जाती है।
जहां तक मंडुवा का वैज्ञानिक विश्लेषण है कि इसमें Multilayered seed coat (5 layers) पाया जाता है जो इसे अन्य Millet से Dietary Fiber की तुलना में सर्वश्रेष्ठ बनाता है। FAO के 1995 के अध्ययन के अनुसार मंडुवे में Starch Granules का आकार भी बड़ा (3से 21µm) पाया जाता है जो इसे Enzymatic digestion के लिए बेहतर बनाता है। पोषक तत्वों से भरपूर मंडुवे में औसतन 329 किलो कैलोरी, 7.3 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम फैट, 72.0 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.6 ग्राम फाइबर, 104 मि0ग्राम आयोडीन, 42 माइक्रो ग्राम कुल कैरोटीन पाया जाता है। इसके अलावा यह प्राकृतिक मिनरल का भी अच्छा स्रोत है।

इसमें कैल्शियम 344Mg तथा फासफोरस 283 Mg प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। मंडुवे में Ca की मात्रा चावल और मक्की की अपेक्षा 40 गुना तथा गेहूं की अपेक्षा 10 गुना ज्यादा है। जिसकी वजह से यह हड्डियों को मजबूत करने में उपयोगी है। प्रोटीन , एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट तथा फीनोलिक्स की अच्छी मात्रा होने के कारण इसका उपयोग वजन करने से पाचन शक्ति बढाने में तथा एंटी एजिंग में भी किया जाता है। मंडुवे का कम ग्लाइसिमिक इंडेक्स तथा ग्लूटोन के कारण टाइप-2 डायविटीज में भी अच्छा उपयोग माना जाता है जिससे कि यह रक्त में शुगर की मात्रा नही बढ़ने देता है।

अत्यधिक न्यूट्रेटिव गुण होने के कारण मंडुवे की डिमांड विश्वस्तर पर लगातार बढ़ती जा रही है जैसे कि आज यूएसए, कनाडा, यूके, नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, ओमान, कुवैत तथा जापान में इसकी बहुत डिमांड है। अनाज के साथ-साथ मंडुवे को पशुओ के चारे के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। दुनियाभर में मंडुवे का उपयोग मुख्य रूप से न्यूट्रेटिव डाइट प्रोडक्ट्स के लिए किया जाता है। एशिया तथा अफ़्रीकी देशो में मंडुवे को मुख्य भोजन के रूप में खूब इस्तेमाल किया जाता है जबकि अन्य विकसित देशो में भी इसकी मुख्य न्यूट्रेटिव गुणों के कारण अच्छी डिमांड है और खूब सारे फूड प्रोडक्टस जैसे कि न्यूडलस, बिस्किट्स, ब्रेड, पास्ता आदि मे मुख्य अवयव के रूप मे उपयोग किया जाता है।

जापान द्वारा उत्तराखंड से अच्छी मात्रा में मंडुवे का आयात किया जाता है। द टाइम्स ऑफ इण्डिया के अनुसार इण्डिया की सबसे सस्ती फसल (मंडुवा) इसके न्यूट्रिशनल गुणों के कारण अमेरिका में सबसे महंगी है। मंडुवा अमेरिका मे भारत से 500 गुना महंगा बिकता है। यूएसए में इसकी कीमत लगभग 10US डॉलर प्रति किलोग्राम है जो कि यहां 630 रुपये के बराबर है। जैविक मंडुवे का आटा बाजार में 150 किलोग्राम तक बेचा जाता है। उत्तराखण्ड का अधिकतम खेती योग्य भूमी असिंचित है तथा मंडुवा असिंचित देशो मे उगाए जाने के लिये एक उपयुक्त फसल है जिसका राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पौष्टिक उत्पाद बनाने मे प्रयोग किया जाता है अतः मंडुवा प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर स्रोत बन सकता है।

 

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