
*****************************************
(लेखक: जगमोहन साह)
(लेखक: जगमोहन साह)
"बेड़ू पाको बारमासा, काफल पको चैता" आज उत्तराखण्ड में जन-जन द्वारा गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगीत है।
काफल तो ठीक है, पर यह बेडु होता क्या है जानिये, बेडु उत्तरी-पश्चिमी हिमालय के निम्न ऊँचाई से मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों मे पाये जाने वाला एक बहुमूल्य पौधा है। बेडु का प्रदेश में कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं किया जाता है, अपितु यह स्वतः ही उग जाता है तथा बच्चों एवं चारावाहों द्वारा बड़े चाव से खाया जाता है। यह उत्तराखण्ड में बेडु, फेरू, खेमरी और हिमाचल प्रदेश में फंगरा, खासरा, फागो आदि नामो से जाना जाता है।
बेडु औषधियों के गुणों से भरपूर है। इसका पूरा पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप (चूप) आते हैं। जिसकी वजह से कई बीमारियों के निवारण में यह सहायक होता है। पारम्परिक रूप से बेडु को उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह तथा फंगस सक्रंमण के निवारण के लिये प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में बेडु के फल का गुदा कब्ज, फेफड़ो के विकार तथा मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है।
(प्रस्तुति: जगमोहन साह, बी ब्लाक, सेक्टर 62 नोएडा)
0 टिप्पणियाँ