
हमरि दिद (बड़ी बहन, दीदी)
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
हमरि जेठबौज्यूक चेलि हमर बाबूक भतिजि हम सब नानतिननैक दिद बैजन्ती आज ऐरैछन हो सौरास बै धोधोसंदी (बड़ी मुश्किल से)। मैं रमेश, बै सात बर्स ठुलि और सब नानतिननैक दिद बैजन्ती आपण नानूनान भौ (छोटा बच्चा) ल्हिबेर ऐरैछन हो।
हम आज लै इस्कूल नि गेयां, कै जानू हमरि चुलबुली दिद ऐरैछन। हमार आंगण में धुरकणी, हमन दगै दाणि खेलणी हमरि दिद आज ऐरै छन हो। मैं तैं रमुई कुंणी वालि हम सब भै बैणिन कं बरोबर स्नेह और प्यार करणी हमरि दिद आज रत्तै पुज रै छन उनार दगै उनौर देवर लै ऐरौ, जै आन्होल तौ आब हम दिद दगै कैसी धुर्कुंल?
पर भल बात यो छु कि तौ अल्लैभात खैबेर न्हैंजाल। फिर देखिया हम खूब उछल कूद और लुकाछिपी, दाणि, बाग-बाकरि और घुच्ची (कंचे) लै खेलुन। ऐल पैल्ली किताब ,पढ़ बेर मुणी गणित लै कर ल्हिनू। सबनौ कौय (कहना) लैमान ल्हिनू, आमाक (दादी के) हाथ-खुट लै मिन दिनू (मलना, दबाना)। फिर दिद दगै खूब हल्ल गुल्ल (हल्ला गुल्ला) करुंल।
द्वि दिनांक बाद बाबू, दिद कं भिंज्यूक पास बरेलि (बरेली) पुजै आल। बाबाहो भिंज्यू दगै कैसी रुन्हैंल हमरि लाड़िली दिद। ब्याक बाद दिदिक भिंज्यू दगै रूण जरूरी छुबल (जरूरी)। तौस भिंज्यू कै (क्यों) छाटन्हौल हमरि फूल जै दिदि हूं। कां भिज्यूं रै ग्याय कां हमरि भली भलि देखण चांण दिद। के करनू हमर को शुणू बस भिंज्यू बण ग्याय ,हमरि दिद कं लि ग्याय हमन हुं के बच? आज हम सब मनकस करुंलै।
हमार इज बाबू कुनी कि कतु भल जवैं मिली (दामाद मिले)। भिंज्यूक जेबन डबल छन बल मस्त। भलोभल स्वाम्य लै भौ बल। दिदिक सास, सौर लै भाल मैस (अच्छे इंसान) छन बल। जेड़ज कुणैं छिन हमौर बैजंतीक जौ भाग, आब दिदिक च्योल लै है गो। जे लै भौन्हौल (जो भी हुआ हो), भै तो हमरि दिद।
तौ तैक देवर जाणै नि लागरोय, जल्दी जान धैं। तौ चावौ धैं सब तैक कतु खुशामद करणी (खुशामद कर रहे हैं)
चलौ आब पिठ्या लगै हैलौ दिदिक देवराक कपावन (माथे पर) आब तौ जालै सही (जायेगा ही)। चलौ आखिर न्हैंगो (आखिर चला गया)। वापिस तो नि आल नै(वापस तो नहीं आयेगा)मैल आपण दिद थैं पुछौ।
तौस नि कून कै नि कून हमन कं दिदी तुमार दगै खेलण छु,आज हम जाणबुझ बेर हार जूंल त्यार दगै कजि(झकौड़)लै नि करुंल ,आ हमार दगै आ और खेल। आम् रिश्यालि(दादी नाराज होगी)। कै हैं नाराज हम पैल्लि लै खेल छियां। आब लै खेलुन (अभी भी खेलैंगे)।
ओ बैजंती भौं दाढ़ हालण भैगो(बच्चा रो रहा है)। दै तौ भौं लै बिल्कुल भिंज्यू पर जै रौन्होल।
अरुण प्रभा पंत
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