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द्वि खुटी


द्वि खुटी
लेखिका:रेणुका जोशी

बागाक नानानान द्वि पोथील आज द्वि म्हैणाक है गेईं। बाग आपुण पोथीलन कं समझुनेर भैइ - नानतिनों यौ बण हमौर घर छू । यां बै भैर कब्भै झन जाया।
किलै इजा हमन कं कैकै डर पड़ रै के? जो हमनकं डरालौ हम उकं खै द्यूल।

और कैधै झन डर्या नानतिनों पर द्वि खुटी मैस देखनै भाजि आया। वीक पेट त भौत्तै ठुल छू। सब्बै चीज खै जां ऊ। वीक दिमाग लै भुक्कै रूं। भुक दिमाग कं खवुहुं सब चीजनैकि खरपट्ट कर दीं ऊ।
इजा द्वि खुटी मैसनक दिमाग त भौत्तै ठुल हुनल पै ?

होइ नानतिनों वीक दिमाग त मरभुक्खी छू। और भौत्तै तेज दौडौ़।  दुन्नी मे सब्बै चीज खै हाली वील। धरती अकास पताल सब्बै कं आपुण समझौं ऊ।
इजा वी दगै कसिक लडुन हम ?

वी दगै झन लडि़या पोथीलो। ख्यां लै झन कर्या। द्वि खुटी देखीलौ त भाजि आया आपुण उड्यार मे, लुकी जाया।
उसिक द्वि खुटी कं खांहु आजकल एक राक्षस ऐरौ बल।  वीक डरल सब्बै द्वि खुटी गोठी रैंई।  भैर कम ऊणैयी।ऐल तुम भैर पन निझरक है बे खेलो।

डौंरी बे बागा पोथील ख्यां ख्यां कर बे खेलण भग्याय।
उनैरि मै मनमनै कुणैछी बल - द्वि खुटी है बे बची रया नानतिनों। जी रया।

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