
भ्यारपन हंसि घर उज्याड़।
रचनाकार: दुर्गा दत्त जोशी

भुला आब सूरज पछिम में न्हैगो।
यां पहाड़क पुर गों ठ्याक में ऐ गो।
भौतै गरीब लै इंगलिश पिनारौ।
दगड़ में गरम पकौड़ि लै खानैरौ।
भुलिया पहाड़ कि छ नश में झुलि रौ।
नशाक मामल में टुक में पुजि रौ।
गों गों में सरकार ठ्याक खुलोंरै।
मलिबै नशा न करो लै कोंनारै।
घर नानतिन नूंणैकि डइ दगड़ रू्वाट खनी।
एथि उथि विना चपलै जनी।
यां ठ्याक में एकै एक ठुल है रौ।
घरक मरीज बिना दवाई मर नारौ।
पोथिया न करा नकरा कौनै कौनै रई।
हमार पुराण आम देखि बेर पगली गइ।
पर कि कों को मानूं इनरि बात।
शराबलि बिगाड़ि है इनरि औकात।
भुलिया शराबलि करि हालि हाल खस्त।
पछिम में सूरज अस्त यां पहाड़ मस्त।


दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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