
रचनाकार: दुर्गा दत्त जोशी


हमार पहाड़ाक गों ग्राम में पढाई चौपट हैरै।
हाई ईस्कूल इंटर में पढनीवाल चिट्ठी पत्तर न पढ़ि पै नैरै।
आज आमैकि चिट्ठी ऐरै
आब आमकैं देखा धें क्वे पढ़ि लेखि छन जो चिट्ठी पढ़ि पाल...
म्यार गों में, आमैकि चिट्ठी ऐरै।
चिट्ठि देखि, आम भौतै खुशि हैरै।
आब थ्वाड़ देर में, इस्कूल बै गोपु आल।
चिट्ठी पढ़ि बेर, हाल चाल मैंकें बताल।
गोपु कोंण जांनेक आमाक सामणि ऐगो।
और दिन देर में औंछ्यू आज बेरै ऐगो।
ले पोथिया नाती य देख चिट्ठी पढ़ि बेर बता।
देख धें तु हाइ सकूल में भये पढ़ मैंकें जता।
आमा य भाषा मैंकें नि औंनि कई हौर कें दिखा।
चिट्ठी पढ़नि हमन कें न सिखि,न कैली सिखा।
आब्बै अमरू आल, ऊ इग्यार.में भय।
ऊं कें ज निआलत, फिरि मुश्किलै भय।
आब हमरि आम, चिटँठी ल्हिबेर पुर गों में गै।
चिट्ठी में कि लिख राखौ यां कैकें नि ऐ।
आम आब खामोश छन पढ़ाई हाल देखी।
सरकारलि यां यास इस्कूल, केहीं खोली।।
नानतिन छाड़ा मास्टर लै आमलि फेल करी।
खालि लागि रई, योई त भै अंधेर करी।।



दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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