
सुणछे....परूलियो
रचनाकार: दुर्गा दत्त जोशी
जदिन बटिट त्यार चकर में पड्यूं।
बस समझल्हे उदिन बटिक चकरै में रयूं।
ब्या हुणैक पेंनि त्वे के भौत मिठ्या खवै।
ब्या बाद त्वेकें पुरि हल्द्वाणि दिखै।
त्येरि हर फरमैसि पुरि करणै में रयूं।
सुणछै आब बिल्कुलै थकि गयूं।
त्येरि मुखड़िक हंसि देखणैकि हौशि भै।
मगर म्यार कोशिशैलि, त्वेकें हंसि कभै नि ऐ।
आब न्हा ताकत खुटन में, न हिटणैं तराण।
स्यात तु तबै खुशि होली जब म्यार निकवाल पराण।

दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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