
चौमास क द्यो लै भुती गो.....
(रचनाकार: दिनेश कांडपाल)
यौं द्यो छिट्टां ल भौजी त्यर आंगण भीजौ सार
आब कसिक तू घर जालि सासू लै टुकाई मार
त्यर घर में छू लैरूवा तू कर न य मार मार
त्यर खुट कथैं रणि जाल कात लै रौ ढ़ुवां पार
दिन भर हयी दगण त्वील कतुक मगज मार
तू भिजि बे छै निझूत त्यर भौ नि हो बिमार
त्यार पोछिन का खाज लै पाणि ल भिंजा सार
भो बंणमें के तू खालि पाणिंल भरि उखोव त्यार
आब् चौमास क द्यो लै भुती गो हमूं पार
म्यर भौ का लुकुड़ भीजा गूदणि छ भीजि सार
@दिनेश कांडपाल

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