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कैकि नजर लागि

पिथौरागढ़ के बदलते जनजीवन पर कुमाऊँनी संस्मरण, कैकि नजर लागि Kumauni memoir about changing rural life in Pithoragarh

कैकि नजर लागि

(लेखक: दिनेश भट्ट)

आज भौत दिनन बाद गोंकि तरफ जाना को मौक मिलइयो। गों में पुजते हि सब है पैली माधोसिंह पधान बुबु कादगाढ़ भेट भै। पैलाग-ज्यूजाग याद पधान बुबुकन लाग्यान कि "आज भौत दिनन में आछा हो। बैठ, के हवै रान हाल-चाल?" मैंल क्यो- "बुबू मैं तो ठीकै छूं... नौकरी का झंझटों में फसी भयूं। आज तुम लैक मजोर जस देखि रिंछा। तबियत ठीक-ठाक छी।" इतुक बात में पधानि आमा लै गोठ है भ्यार आई ग्या। "अच्याल तन सोचने में रूनान, बिमार त के न्हातिन, उदास बैठि रूनान" जबाब, पधानि आमा ले दियो। फिर मैंले बातचीतकि शुरुआत करि-"बुबु अलीबेर खेति-पाति कसि है रैछ?" अरे के नैं नाती! आब के हुंछि, नैं खेत रया, नैं नाज-पानि।

माधोसिंह पधान ज्यूका पुर्याकर्भ ठुला जिमदार थ्या। छै पट्टी सोर में अपनि सब है पुरानि बसासत बतूनान। कभै उनार मीलों दूर तक फैली खेत थ्या। नाज-पानि, धौ-धिनालि सप्पै ठीक भ्या। घर नाज-पानिले और खर्क गोरू-बाछान ले भरी रुनेर भ्यो। पधान बुबु कुन लागी-"म्यार बुबु का दिनन तक खेति-पाति, नाज-पानि कि इफरात थी। जोगि-जलन्तरि, अटीवा-बटावा क्वे भूको-तिसो नैं जांध्यो। ल्वार-ओड़, औजी सबै अघै रूथ्यां। आब तो अपननै खान हिं नै हुनो। उत्ती बैठी पधानि आमा लै कुन लागी- "कैलास-हिमाल जात्रा में जोगिन कि पुरि फौज ऊंथि, पाल धारक शिवाल में रुकथ्या। दूद, घ्यू, लण-तेल, आटो सब हमार घर है जांथ्यो। आब तो नानतिनान लिजी ले दूद न्हांतिन। गोरु-बाछ ले क्याल.....    सात रनो।  जब खेत .....

देर चुप रून बाद पधान युबु बोल्या "जै बखत हवाई पट्टी का रुपाया मिल्यान, भौत देखिनान, खूब शराब-शिकार खाछ।  मोटर सैकिल ल्यायान, खूब दिवाली करी चार दिन।  हाइ दूसरांकि के कूंछा, तुम लै रोज टैट है बेर घर अंथ्या। कां ग्या उन रूपांयां? के जर-जेवर जै जोड़ि छी, के मकान जै बनाछी।  अपनि पोल खुलते देख बेर पधान बुबु आमा कैं आँखा देखूंन लागी। द्वि मिलट चुप रून बाद फिरि पधान बुबु कूंन बैठि- "को जाण थ्यो महाराज! इसा हाल हवाला कैं, पैली फारम में जमीन गै, फिर हवाई पट्टी में और आब तो गौचर-पनघट लै फौजले तार-बाड़ करि हालीछ। आब त गोरू-बाछ लै कसिकै पालिनान। पानि तक में कब्ज ह्वै ग्यो।

हुक्का गुड़गुडूने पधान बुबु कूंन लागी- "अरे नाती! कभै हमारा बुबुका दिनन तलक सालीक धान और बासमति कन्यू का रास में आफी झड़िनाक अलग राखि दिथ्या। शिवाल में भोग लागध्यो वीको। खुटाले माडिनाको धानक चावल नैं चढ़ थ्यो शिवज्यू में। आब तो 555 को मोल ल्हिनाक चावल छन। शिवज्यू ले खानान, हम ले।"

पधानि आमा कून लागी- "घास लै कतुक अकोरो ह्वै ग्योछ। आब पोरबेलि लछिया कि ब्वारि फारम कि तरफ गैछ, घा ल्यून हिं। फारमका चौकिदार राणका लै लठिया बेर भजै दीछ। "तुमर बाबुक छौ यो फारम, यो सरकारि फारम छू कूंछ। आब तो फौज में भर्ति-सर्ति लै नै हुन लागि रै। रूजगार लै के न्हांतन, नजाणि कैकि नजर लागि गै हो।"  पधान बुबु और उदास ह्वै ग्या।

दिनेश भट्ट, सोर पिथौरागढ़

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