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के नि आल हाथ


🍕🍕के नि आल हाथ🍕🍕
रचनाकार: सुरेंद्र रावत

बन्धरी क पाणी, जम करी ल्यो।
मणी मणी कनैं, बित है जां द्यो।

बन्धरी क पाणी जस, छन हमर करम।
जाणि कभै मिलों, फिर दुसर जनम।

कुड़ी क पथार अब, खसकण लै गी।
दन्यारों पथार अब, द्विये चार रै गी।

दिन मैंण साल बित, कम है जै उमर।
कुड़ि क पथार जस, रै जानी दन्यार।

तबों तो मैं कण लै रूं, सुणो मेरी बाता।
उमर गुजरि जालि, के नि आल हाथा।

बन्धरी क पाणी, जम करी ल्यो। 
मणी मणी कनैं, बित है जां द्यो।


ॐसूरदा पहाड़ी
सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी"

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