
"त्रिचमैकि क्वीड़ संग पीड़"!
लेखक: श्री त्रिभुवन चन्द्र मठपाल
पैल कुमाँउनी भाषा दिनाँकदिन
पैल कुमाँउनीं भाषा दिनैकि बधाई दगड़ि !
देख लिया म्यार आखरूकि भीड़ !
पलायन पारि त्रिचमकि पीड़ !
संग दुख सुखाक क्वीड़ !
देख लिया म्यार आखरूकि भीड़ !
पलायन पारि त्रिचमकि पीड़ !
संग दुख सुखाक क्वीड़ !
मजबूर हबै पहाड़ छोड़ !
दै हम बिपताक मारी !
पलायन नाम धरि दी हो !
ख्वार पारि लिख य हमरि बिमारी !
आज हमुपारि य पलायन !
जाग जाग कैं कलंक है गो !
घरपन देव जागरिंम लै !
य पलायन हंक है गो !
बात बात में य पलायन !
दिलम चुभणीं डंक है गो !
लाखों कमैबैर लै त्रिचम आज !
पहाड़ाक सामणिं रंक है गो !
पै तुमैं बताओ बुद्धिजीवियो !
कैल छोड़ौ खुशी खुशील पहाड़ ?
क्वे बैणिंक ब्याक कर्ज उतारहैं आय !
तो कैकणिं उठ बेरोजगारिक उड़भाड़!
दै हम बिपताक मारी !
पलायन नाम धरि दी हो !
ख्वार पारि लिख य हमरि बिमारी !
आज हमुपारि य पलायन !
जाग जाग कैं कलंक है गो !
घरपन देव जागरिंम लै !
य पलायन हंक है गो !
बात बात में य पलायन !
दिलम चुभणीं डंक है गो !
लाखों कमैबैर लै त्रिचम आज !
पहाड़ाक सामणिं रंक है गो !
पै तुमैं बताओ बुद्धिजीवियो !
कैल छोड़ौ खुशी खुशील पहाड़ ?
क्वे बैणिंक ब्याक कर्ज उतारहैं आय !
तो कैकणिं उठ बेरोजगारिक उड़भाड़!
( "त्रिचम उदगा " ४, सितम्बर २०१८ )

फोटो: गूगल
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