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रंगवाइ पिछौड़ पैरि बटिरै

कुमाऊँनी कविता, चेलिक सौरास जांणै तयारि गौंनू में पैलि इसी कर छीं।Kumaoni Poem about the bride getting ready to  go with husband

रंगवाइ पिछौड़ पैरि बटिरै
(रचनाकार: दिनेश कांडपाल)

चेलिक सौरास जांणै तयारि गौंनू में पैलि इसी कर छीं। वीक एक चित्र..

रंगवाइ पिछौड़ पैरि बटिरै

कलजकि टुकुड़ चांन
मैत बटि आंख उदेखी
सौरास हैं जै रौ परांण

नाक में नथ चर्यो गलोबंद
पौहुंचि हाथूं कि शान

खुट में छाजन बिछु पायल
धमेलि है रै फटफटान
मांग क टीक चमकि रछौ
हमेली देखो तपतपान
आंगूं अंगुठि नग कैं देखो
झुमुक छाजि रयीं कान

सरुलि बिमुलि पुजौहों ऐरयीं
दगड़ बटिरै रधुलि बान
भिनज्यू आं रयीं स्याल्दे कौतिक
मन वीक हैरौ उछांण
गुड़पापड़ि ल छापड़ि भरी
पुरि छउअ अजब शान

कुटकुटा यों सिंगल देखो
हैगे चेलि मेरि किरसांण
गाड़ गद्यार हैं खिचड़ि धरि रै
भेट धरी रै देविथान
बिलैंति मिट्ठै पोछिन में छ
देलि घरक नानतिनान

मिसिरि कुटरि गांठ बादिरै
बादि रौ वीलै गुड़ ओ चांण
द्येलि पुजणं हैं तील चावल
बांधि बे धरि रै पुंतुरि क तांण
जंवै ऐ रयीं पल्टन बटि
देवर ऐरो उ कणि लिजांण

घर बै सासुक जबाब ऐरौ
ऐजा ब्वारि फटफटान
गोरु ब्य रौ छ दूद है रौ छ
पोरुहु वीक छू बधाण
नगारधंण दूध चणांणलि
ऐजा अब चटपटान।

@दिनेश कांडपाल

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