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सैणी बगैर मैस छन बैकार

कुमाऊँनी कविता-मैंसो कैं हमेशा सैणियुक दगड़ चैं, चाहै मन्दिर में हो, या य दुणि संसार में Kumauni Poem woman makes a man complete

सैणी बगैर मैस छन बैकार
(रचनाकार देवेन्द्र सती)

सैणिक बगैर मैंस छन बेकार
मैंसो कैं हमेशा सैणियुक दगड़ चैं
चाहै मन्दिर में हो 
या य दुणि संसार में

मन्दिर में
कृष्ण दगड़ में राधा
राम दगड़ सीता
शिवज्यू दगड़ पार्वती

य दुणि में
पढ़न तका विद्या
आजीविका हेतु लछ्मी
और अंत में चैं शांति

दिनैक शुरुआत में
ऊषा
दिनैक समाप्ति सन्ध्या
काम तो अन्नपूर्णा लि जी
रात निशा निंदिया रानी दगड़ में

सितणक बाद सपना
मंत्रोचार में गायत्री
ग्रन्थ में गीता
मंदिरो में भगवानुक सामणि
वंदना, पूजा, अर्चना, आरती, आराधना 
और ले यू सब श्रद्धा क दगड़ में

अन्यार में ज्योति
यकेले  में स्नेहा
लड़े में जया, विजया
बुढ़ापा में करुणा, ममता
गुस्स में छमा 
येक लिजी तो धन्य छु स्त्री जाति


मिकै आशा छु आपु लोग म्यरि भावना समझ गो हनला !!!!
आपण मार्ग स्वंय बनाया।।।  धन्यवाद
 
कविता: देव सती, Tuesday, 3 September 2019
चौबटियक थोड़ तलि बटि, पपनैपुरी पाखुडा़

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