'

मुहावरे और लोकोक्तियाँ - कुमाऊँनी भाषा में (भाग-१९)

कुमाऊँनी भाषा के कुछ प्रचलित मुहावरे और लोकोक्तियाँ और हिंदी अर्थ Idioms and phrases Kumauni language and hindi meaning

कुमाऊँनी भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियाँ

यहाँ पर हम कुमाऊँनी की कुछ प्रचलित मुहावरों और लोकोक्तियों को उनके अर्थ के साथ जानने का प्रयास करेंगे:-

दस दशैं, बीस बग्वाल, कुमूँ बीस, फुल भग्वाल
अर्थात
इन्तजार के दिन गिनते रहना

दशरथौ'क बाण, दशरथ कैं’ई लागौ
अर्थात
अपने दुश्कर्मों का फल व्यक्ति को भुगतना ही होगा

दस म्हैण बोकौ, नौ म्हैण सेकौ, पै दिगो धोको
निकम्मी या नालायक औलाद होना

दली दाल, फली चावौं खै, निमखण भै'रै
अर्थात
कामकाज कुछ नहीं खाली रोटी तोड़्ना

दाद राठ चाक में, तो हम पाख में
अर्थात
द्वेष वश किसी भी हद तक अपने को गिरा देना

द्याप्त नवाण गै, हुमण दगड़ लाग
अर्थात
किसी कार्य सिद्धि में नई विपत्ति आना

दातुल आपणि तरफ़ काटूँ
अर्थात
व्यक्ति अपने सम्बन्धियों और मित्रो का ही पक्ष लेता है

दांतों’क आडिल, जिबड़ सयाण
अर्थात
अन्धों में काना राजा

दाड़िम खै, दाड़िम ऎ
अर्थात
जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे

दात जै एक, दूतकारणि जै दस
अर्थात
देने वाले कम दूतकारने वाले अनेक

द्वालि जै बुजि गयि, जै लै मार ली माछ
अर्थात
किसी अनुभवी कुशल व्यक्ति द्वारा कार्यसिद्धि की योजना बना देने के बाद उसकी सफलता निश्चित है

दि जै नै तो, अकरौ’क क्ये कौ
अर्थात
अगर कोई वस्तु प्राप्त ना होने पर महंगा होने का कोइ मतलब नह

दि बेर दाता, सै बेर सयाण
अर्थात
देने से नहीं सहनशीलता से व्यक्ति की असली पहचान होती है

दिना’क चार पहर, म्यर मन में आठ लहर
अर्थात
मन का अत्यधिक विचलित रहना

दिल्ली’कि दिलवाली, मुखै’कि चुपड़ि पेट खालि
अर्थात
शहर के लोग मीठी-मिठी बातों से दूसरों के बेवकूफ़ बनाते हैं

दिवान, भूत छोड़ौ ना मसान
अर्थात
लालची रिश्वतखोर सरकारी अधिकारी किसी को नहीं छोड़ता

द्वि च्याल म्यार, द्वि पैंस म्यरै, तेरि बलै, म्यर क्ये करैं
अर्थात
दूसरा कितना ही षडयंत्र कर ले जो जिसके भाग्य में है उससे छीन नहीं सकता

दूद चूसि खै राखौ, भात चूसि खेड़ राखौ
अर्थात
कभी हमने भी सम्पन्नता में दिन गुजारे हैं

दूद भात छोड़ दिन, पर दगड़ नि छोड़न
अर्थात
अच्छा खाना भी मित्रता के लिए छोड़ा जा सकता है

दूहरै’कि आस, नरकौ’क बास
अर्थात
दूसरे के प्रयत्न पर भरोसा न कर अपने बलबूते कार्य सिद्धि होती है

दूहरै’कि ज्वे कैं चूड़ि पैरै, छ्मछमानि ग्ये
अर्थात
गलत जगह प्रयत्न या निवेश करने से अपने कर्म/धन का नाश होता है

दुहरौ'क ख्वर चुपड़ बेर आपुंण ख्वर चुपड़ नी हुन
अर्थात
कार्य की सफ़लता के लिए सार्थक प्रयास करना पड़ता है

देखि मैंस क्ये देखण, तापि घाम क्ये तापण
अर्थात
मनुस्य का चरित्र उसके लक्षणों से एक बार में ही पता चल जाता है

देवी'क मार, खबर न सार
अर्थात
भगवान् जब दंड देता है तो उसका कोई पूर्वाभास नहीं होता

दै'क पहरू बिराऊ
अर्थात
बेईमान और अयोग्य को जिम्मेदारी देना

दै ठेकी वाल घर, स्यो पैलाग पाल घर
अर्थात
मित्रता किसी से और मतलब किसी से

उपरोक्त मुहावरों और लोकोक्तियों के सम्बन्ध में सभी पाठकों से उनके विचारो, सुझावों एवं टिप्पणियों का स्वागत है।

<<पिछला भाग-१८>>                                                                                                  <<अगला भाग-२०>>

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ