
🍕🍕पहाड़ों की नारी🍕🍕
रचनाकार: सुरेंद्र रावत
ख्वर में गागौर धरी, गागौर में पानी।
भौते दूर दूर बटी, दिदी भुली ल्यानीं।।
रते बटी ब्याल तक, काम बस काम।
आपुणी कां रैंछ भागी, इनुकणी फाम।।
म्यर म्यर कर्ने सारे, गुजरी जै ज्वानी।
ख्वर में गागौर धरी, गागौर में पानी।
गोर बकरों लिजी दाज्यु, घास काटिल्यानी।
ननांठुलां सर्वो लिजी, खाण यों पकानी।।
द्वी रोटी कमाण लिजी, जैरी जो परदेशा।
उनरि फिकर रैछ, इनों के हमेशा।।
असोज मैहंण हो या, द्यो लागो की धाम।
आपुणी कां रैंछ भागी, इनुकणी फाम।।
ख्वर में गागौर धरी, गागौर में पानी।
भोते दूर दूर बटी, दिदी भुली ल्यानीं।।
धन भाग हमर, सुणों चेली बेटी ब्वारी।
घरबार टिकी छु हमर, सारे तुम पारि।।

ॐसूरदा पहाड़ी, 23-09-2019

सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी"
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