
बीन या फ्रासबीन (French Bean)
लेखक: शम्भू नौटियालफ्रासबीन (फ्रेंचबीन) दलहनी (लैग्युमिनेसी) कुल की सब्जियों के रूप में पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में की जाती है। फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की खेती लगभग सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती हैं। जल ठहराव की अवस्था इस फसल के लिए अति हानिकारक होती है। लेकिन बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। फ्रेंचबीन (फ्रांसबीन) की दो प्रकार की किस्में पाई जाती है, पहली सीमित बढ़वार वाली झाड़ी नुमा या बौनी किस्म जैसे- कटेन्डर, पन्त अनुपमा व दीपशिखा दूसरी बेलनुमा अथवा लतायुक्त असीमित बढवार वाली पूसा हेमलता, स्वर्णलता, काशी तथा लक्ष्मी आदि।
पहाड़ी क्षेत्रों में मुख्यतः कटेन्डर अनुपमा को काफी मात्रा में उगाया जाता है। कन्टेडर तथा अनुपमा फ्रेंचबीन किस्म के पौधे झाड़ीनुमा पौधे हैं। फलियाँ बुवाई के 45 से 55 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। अन्य दलहनी सब्जियों की आपेक्षा फ्रेंचबीन की जड़ों में वायुमण्डल से नाइट्रोजन स्थरीकरण (Nitrogen fixation) करने वाली ग्रन्थियों का निर्माण बहुत कम होता है। जिसके कारण इस फसल को खाद और उर्वरक की आवश्यकता अधिक होती है। फ्रेंचबीन की लता वाली किस्मों को सहारा देना आवश्यक है। सहारा न देने की अवस्था में पौधे भूमि पर ही फैल जाते हैं और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

फ्रासबीन्स लगभग पूरे साल बाजार में उपलब्ध होती है। पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए, सी, के और बी 6 पाया जाता है। ये फॉलिक एसिड का भी एक अच्छा स्त्रोत हैं। इसके अलावा इनमें कैल्शियम, सिलिकॉन, आयरन, मैगनीज, बीटा कैरोटीन, प्रोटीन, पोटैशियम और कॉपर की भी जरूरी मात्रा होती है। जिससे शरीर की पौष्टिक आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती है:
- डायबिटीज रोकने में: इसमें पर्याप्त मात्रा में डायट्री फाइबर्स और कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं। बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स' भी कम होता है जिससे अन्य भोज्य पदार्थों की अपेक्षा बीन्स खाने पर रक्त में शर्करा का स्तर अधिक नहीं बढ़ता। इसमें मौजूद फाइबर रक्त में शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं। मधुमेह के मरीजों के लिए इसे आदर्श सब्जी माना जाता है।
- हड्डियों की मजबूती के लिए: बीन्स में कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत है, जो हड्डियों के क्षरण को रोकता है तथा बच्चों में हड्डियों व दांतों दोनों के विकास में महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन ए, के और सिलिकॉन भी हड्डियों के लिए फायदेमंद होते हैं. इन पोषक तत्वों की कमी होने पर हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। होम्योपैथिक दवाओं में भी ताजी बीन्स का उपयोग रूमेटिक, आर्थ्राइटिस तथा मूत्र संबंधी तकलीफ के लिए दवाई बनाने के लिए किया जाता है
- 3. इम्यून सिस्टम को बेहतर रखने के लिए: हरी बीन्स में पर्याप्त मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जिससे इम्यून सिस्टम बेहतर बनता है। ये कोशिकाओं की क्षति को ठीक करके नई कोशिकाओं के बनने को प्रोत्साहित करता है
- आंखों के स्वास्थ्य के लिए: हरी बीन्स में कैरोटीनॉएड्स मौजूद होते हैं जो आंखों के अंदरूनी हिस्से के तनाव को कम करने का काम करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद कई तरह के लवणों से आंखों की रोशनी भी बेहतर बनती है।
- कैंसर से बचाव के लिए: बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। एन्टीऑक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के साथ् ही त्वचा व दिमाग के लिए भी अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से कैंसर की संभावना कम हो जाती है। इसमें मौजूद फाईटोएस्ट्रोजन स्तन कैंसर के खतरे को भी कम हो सकता है। हर रोज हरी बीन्स के सेवन से एक खास किस्म के कोलोन कैंसर के होने का खतरा भी कम हो जाता है।
- दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए: फ्लेवेनॉएड्स की मौजूदगी व घुलनशील फाईबर का अच्छा स्रोत हैं। यह दिल के लिए भी काफी फायदेमंद होते हैं। इनके नियमित सेवन से दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा कम हो जाता है। साथ ही ये खून का थक्का नहीं जमने देते। ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन एक कप पकी हुई बीन्स का प्रयोग करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और इससे हृदयाघात की संभावना भी 40 प्रतिशत तक कम हो सकती है। बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्शियम व मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है जो रक्तचाप को बढ़ने से रोकता है और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है।
- पेट को रखते हैं स्वस्थः बीन्स के नियमित सेवन से पेट भी स्वस्थ रहता है। इनके सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं होने का खतरा कम हो जाता है और गैस, कब्ज और मरोड़ की परेशानी नहीं होती है।
- गुर्दे (किडनी) के लिए महत्वपूर्ण: फ्रेंच बीन्स किडनी से संबंधित बीमारियों में भी काफी फायदेमंद है। किडनी में पथरी की समस्या होने पर, आप लगभग 60 ग्राम बीन्स की पत्तियों को चार लीटर पानी में करीब चार घंटे तक उबाल लें। फिर इसके पानी को कपड़े से छानकर करीब आठ घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे फिर से छान लें पर ध्यान रखें कि इस बार इस पानी को बिना हिलाए छानना है। इसे एक सप्ताह तक हर दो घंटे में पीने से अत्यधिक लाभ होता है।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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