
खाल्लि फसक् .....
(हवै पिठ्या)
लेखक - ज्ञान पंत
बंगलौर में एक ब्या ठरी रयी भ्यो। उनैलि फौन करौ कि मुन्ना, तु आले त पुरोहित कैं ले दगाड़ै लि ऐयै। डबल-हबल सब है जा्ल और बात-चीत ले करि ल्हीयै। मै समझण में देर नि लागि कि बातचीत 'क मतलब ऊँण, जा्ँण, और पंडिज्यू 'कि फीस-फास 'क ले एक मो्ट-मो्ट अंताज ल्हिंण छी। खैर, फोन करि बेरि मैं पंडिज्यू घर गियूँ। फसक-फराव मैयी मैलि बंगलौर वालि बात बतै और यो ले कौ कि आपुँ लखनौ में उदिनैकि व्यवस्था करि ल्हिया..... और हिटण जरुरी छ। पैलीं उनैलि थ्वाड़ नौ-नुकुूँर करीं कि यार उदिन ठुल लगन छ। म्यार तीन ब्या छन ..... उनैलि साल भर पैली बटी कै राखौ। उलै कि कौल कि ऐन टैम में जिब्बू भाजि ग्यो ..... उसी रत्तै ब्याव चहा ठपुक ययीं लगूने भै ..... त्वील धरम संकट में हालि दियूँ मुन्ना! पुर तीन दिनौ हर्ज है जा्ल ........ जिब्बू माने जीवन, पंडिज्यू नाम छ।
संजोग देखौ, हमा्र पुरोहित ले जीवन चन्द्र ज्योशि ज्यू भ्या। यै वील उनन मे म्योर थ्वाड़ जोर ले भये। होयि-दिवाई उठक-बैठक ले भयी पैं..... मैलि मनूँणैकि कोशिश करी कि, देखौ महाराज म्यार काम हुनो त के बात नि छी, तुम जमनाज्यू, देबदज्यू, खष्टिबल्लभ ज्यू या त्याड़ि ज्यू थैं ले कै दिना त काम है जा्न। या्स में नक मानणै के बात ले नि भै। अरे पटन न्हाँति त मैंस के करि सकनेर भ्यो हो .... कस कूँछा, बताऔ जिब्बू ' दा? ........ "बात ठीक कुणौंछै मुन्ना, मगर यार यो सब त म्योर नरूँण करि द्याल लखनौ में। तु बात समझनै के न ....
इना्र देयीन के मूँख ल्ही बेरि जून कै हरौछे ........ "पंडिज्यू बलाँणीं त म्या्र हा्थ है पैजाम'क ना्ड़ जस क्याप मुँचण लागौ, किलैकि बात आ्ब मेरि ले नाक 'कि छी। मैलि दिनेश 'दा थैं है कै हाछी ......... कभै न कभै दिनेश'दा लि एक काम तैं कौ और उलै नि करि सक्यूँ त फिर लानत भै कूँछा लखनौ मे रुँण! वी ले पैल और आँखिरी काम भै। यौस ले नि भै कि त्यार दुहा्र चेली ब्या में पुरोहित बलै लियूँन .... ऐल तु के न के इंतजाम कर ल्हे।
मैलि पैजाम जस मलिकै समेर कूँछा और पंडिज्यू आ्ँखन चै बेरि बलायूँ ....... जिब्बू दा, आ्ब के करौ .... हिटण त जरुरै पड़ौल तुमन कैं। नि आला त आ बटी मेरि-तुमैरि कुट्टी भै! यो बताऔ मैलि कभै के कौछै आज जाँणैं ..... म्यार चेली ब्या में नि ऐ सका त के फर्क देखछै मैं में? ......."न यार कुट्टी केहिं करलै। हम वां ले अगल बगल भयाँ और याँ ले .... कसि बात कै दे त्वील कौ! तस कैं हुँछै .... जसी ले होल तेरि पत्ती त धरणै पड़ैलि! अरे, वृन्दावन में रहना है, राधे राधे कहना है .... "
पडिज्यू नरम पड़ी त मैलि ले "मार गाँठ" जसि पाड़ि दे कूँछा ...... दाज्यू मैं तुमन मैं पक्क भरौस छ। यै वीलि बिन पुछियै हाँ करि दे .... दिनेश'दा घबरै रौछी! कूँण ला्ग कि जीवन चंज्यू ऐ दिना त बंगलौर में फ्लैट ले पवित्र है जा्न और काम ले विधि विधानैलि है जा्न...... और ले तमाम बात चीतन में घुमै-फिरै बेरि पंडिज्यूँ थैं पक्की करै ल्हे कि चार पैट बैसाखा-दिन बंगलौर ब्या में जा्ँण छ कै। उनैरि डायरी में ले लिखै दे ..........
साँचि में, उदिन उनैरि तीन बुकिंग छी। दुहौर चहा पीन-पीनै मैलि आपण तरफ बटी यो ले कै दे कि दाज्यू, तुम फिकर नि करौ ..... मैलि "हवै पिठ्या" तै ले बात करि है! "हवै पिठ्या" समझण में पंडिज्यू कैं झिट घड़ि ले देर नि लागि। हवै जहाज'क नाम पर उनन् लै पाँख जा्स लागि गोछी ........उ च्याट्ट बलैयीं कि मुन्ना .... ढाई बाज्यै फ्लाइट छै त मैं उप्रेति ज्यू वाँ रत्ते आबदेव-पूर्वांङ करै द्यून। ब्याव कै खष्टी न्है जा्ल ......। खष्टी है गोछी मगर चार पैट बैशाख 'क और ब्यान' क इंतजाम करणा लिजी, जिब्बू 'दा ....... विश्वम्भर पंडिज्यू और गौकुल कें फौन करण लागीं।
आ्ब म्योर काम ले भलिकै सपड़ि गोछी ......।
ज्ञान पंत, 29-06-2017

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