जालली का इटलेश्वर महादेव
उत्तराखंड का अतिप्राचीन सिद्ध और स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग(लेखक: डा.मोहन चन्द तिवारी)
👌मंदिर प्रांगण के ध्वंशावशेष बताते हैं कि यहां पहले कभी कत्यूरी शैली का मंदिर बना था।👌
मैं जब भी अपने पैतृक निवास ग्राम जोयूं में आता हूं तो अपने गांव से 4 किमी की दूरी पर स्थित जालली स्थित इटलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन अवश्य करता हूं। आज मैंने प्रातःकाल जालली की जीप पकड़ी और इटलेश्वर महादेव के दर्शन किए। संयोग से आज जालली क्षेत्र में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भी बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है। स्थानीय क्षेत्रवासियों के द्वारा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर राधाकृष्ण को डोली में बिठाकर शोभायात्रा निकाली गई। संयोग से जब मेरा जाना हुआ तो उसी समय राधाकृष्ण जी की डोली का भी मंदिर प्रांगण में प्रवेश हुआ और प्रभुकृपा से मुझे इटलेश्वर मंदिर में ही भगवान शिव के साथ साथ राधा कृष्ण जी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह हमारे देश की उदात्त परम्परा रही है कि जन्माष्टमी हो या शिवरात्रि या अन्य कोई त्योहार श्रद्धालुजन अपने स्थानीय मंदिरों में अत्यंत भक्तिभाव से पूजा अर्चना करते हैं। इटलेश्वर महादेव में भी आज अच्छी खासी भीड़ थी। मंदिर में जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुजनों की इस अति प्राचीन ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करने की मनोकामना से दर्शनार्थियों की भीड़ थी। इस महादेव के मंदिर प्रांगण में राधाकृष्ण, हनुमान जी की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं।
गौरतलब है कि जालली घाटी के प्रधान शिव मंदिरों में सिलोर महादेव, बिल्वेश्वर महादेव के साथ साथ इटलेश्वर महादेव की भी विशेष ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता रही है। होली, दीपावली, मकर संक्रांति आदि त्योहारों में यहां पूजापाठ करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
मैं जब सन 2015 में सुरेग्वेल के निकट तथा जालली घाटी से ऊपर 4 कि मि की दूरी पर स्थित ‘दाणुथान’ में आर्यों के इतिहास के संदर्भ में शोधात्मक पर्यवेक्षण कर रहा था तो लगभग उसी दौरान मुझे इटलेश्वर महादेव के पुरातात्त्विक महत्त्व के सम्बंध में विशेष जानकारी प्राप्त हुई थी।
यहां बंधरा ग्राम के निवासी पान सिंह बिष्ट जी ने मुझे तब इटलेश्वर मन्दिर से निकली लाल मिट्टी से बनी पक्की ईंट को भी दिखाया था जो इस तथ्य का प्रमाण है कि जहां आज जालली का बस स्टैंड है वहां कभी पक्की ईंटें और पक्के मिट्टी के बर्तनों को बनाने वाले कुंभकारों की आवासीय बस्ती रही होगी। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि प्राचीन काल में इस मंदिर का निर्माण ईंटों से होने के कारण इसे 'इटलेश्वर' महादेव कहा जाता है। गौरतलब है कि यह शैवधर्म का धार्मिक तीर्थ स्थान इटलेश्वर महादेव का मंदिर जहां स्थित है उसके निकट ही सुरेग्वेल की ओर जाने वाला पर्वतीय ढलान 'माईधार’ यानी मातृदेवी का स्थान माना जाता है जहां आज भी ग्यारह ओखलियों और बाईस ओखलियों के मोनोलिथ अवशेष विद्यमान हैं जो इस तथ्य का भी प्रमाण हैं कि यहां पुरा काल में मातृदेवी के उपासक तथा धान उत्पादक आर्य किसानों की बस्तियां रही होंगीं। ये आर्य किसान सामूहिक रूप से धान की खेती करते थे तथा दूध दही जमाने के लिए पक्की मिट्टी के बरतनों का इस्तेमाल करते थे। जालली क्षेत्र के धान उत्पादक सेरों की खास विशेषता रही है कि इस क्षेत्र की मिट्टी बहुत चिकनी है जो बर्तन बनाने के लिए उपयोगी होती है। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जालली घाटी का यह क्षेत्र पक्की ईंटों और मिट्टी के बर्तनों को बनाने वाले शिल्पियों की भी आवासीय बस्ती रही होगी।
प्रायः देखा जाता है कि पुराकाल में जहां नदी का स्रोत होता था वहां धान की खेती भी होती थी और ऐसे ही धनधान्य सम्पन्न खुशहाल क्षेत्र में विशाल शिव मंदिरों की अवस्थिति रही थी। जालली घाटी का क्षेत्र धान उत्पादक प्राचीन आर्य किसानों का आवासीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में छोटी छोटी नदियां जहां मुख्य नदी के साथ संगम करती हैं वहां प्राचीन काल में कत्यूरी शैली के भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ था। किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि रोहिलों या अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा यहां स्थित विशाल और भव्य शैव मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया। इस धार्मिक विध्वंश का प्रमाण इन मंदिरों के प्रांगण में विद्यमान वे ध्वंशावशेष हैं जिनकी स्थापत्यकला द्वाराहाट के मंदिरों की वास्तुकला से हूबहू मेल खाती है। इटलेश्वर महादेव के प्रांगण में विद्यमान शिवमंदिर का चक्राकार शिखर, खंडित अवस्था में नान्दी की मूर्ति और लोकपाल आदि देवमूर्तियों के खंडित मस्तक आज भी इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि पुराकाल में यह इटलेश्वर मंदिर कभी जालली घाटी का प्रमुख शिव मंदिर रहा होगा।
किन्तु उत्तराखंड का पुरातत्त्वविभाग जालली घाटी के इन प्राचीन और पुरातात्त्विक धरोहरों के प्रति सदा उदासीन ही रहा है। उत्तराखण्ड के विश्वविद्यालयों ने भी कभी इन उपेक्षित क्षेत्रों के इतिहास को जानने के प्रति उपेक्षा ही दिखाई है।यही कारण है कि रानीखेत-मासी मोटर मार्ग पर प्राचीन पुरातात्विक अवशेष आज भी सुनसान पड़े केवल मूक गाथा कह रहे हैं।
इटलेश्वर महादेव के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर प्राकृतिक रूप से बना हुआ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड क्षेत्र में सबसे ऊंचा,आकार में बड़ा और स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इसकी ऊंचाई निरन्तर रूप से आज भी बढ़ रही है। आज जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इटलेश्वर महादेव के सिद्ध ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके और उनका जलाभिषेक करके सुखद अनुभूति हुई है।ऐसा लगा भगवान कृष्ण और देवाधिदेव इटलेश्वर महादेव दोनों के एक साथ साक्षात दर्शन हो गए। भगवान कृष्ण और देवाधिदेव इटलेश्वर महादेव हम सब का कल्याण करें इसी मनोकामना के साथ इस अवसर के कुछ यादगार ताजा चित्र और वीडियो मित्रों के साथ शेयर करना चाहता हूं। सभी मित्रों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
-© डा.मोहन चन्द तिवारी
डा. मोहन चन्द तिवारी जी की फेसबुक वॉल पर पोस्ट साभार
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